Thursday 29 May 2008

पेश-ए-खिदमत है एक एसएमएस वाला शेरनुमा कुछ-


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ख्वाब मंजिल थे और मंजिलें ख्वाब थीं, रास्तों से निकलते रहे रास्ते,
जाने किस वास्ते....

जाने किसकी तलाश उनकी आंखों में थी,
आरज़ू के मुसाफिर भटकते रहे,
जितने भी वे चले उतने ही बिछ गए,
राह में फासले...

Monday 26 May 2008

जेब से पौव्वा निकला

जिसे कोयल समझा वो कौव्वा निकला
आदम कि शकल मे हौव्वा निकला
हमे जो पिने से रोकते रहे शराब
आज उन्ही के जेब से पौव्वा निकला

Saturday 24 May 2008

'फिक्र' ददा माफ़ करना

फिक्र ददा माफ़ करना
एक बहुत पुराना किस्सा कही सुना था फिक्र दद्दा के बारे मे। बहुत अच्छे शायर थे (है ?)। किसी ने उन्हे कहा की आपका बेटा जो बाहर पढ़ने भेजा हुआ है आज कम पढ़ाई मे कम और इश्क मे ज्यादा मसरूफ है । फिक्र साहिब गए वहाँ पर लड़का नही मिला। उन्हे आईडिया आया और वोह उस लड़की के पीछे हो लिए इस उम्मीद मैं की कभी न कभी तो लड़का इससे मिलने आयेगा । काफी देर पीछा करने पर लड़की को भी कुछ अहसास हुआ की एक बुड्ढा उसका पीछा कर रहा है । मामला कही उल्टा न पड़ जाए यह सोच कर फिर्क ने कुछ इस तरह मामला सुलझाया :-

फ्राक वाली ये 'फिक्र' नही तेरी फिराक मे !
यह तो ख़ुद है उसकी फिराक मे जो है तेरी फिराक में !!
--शैलेन्द्र 
बागों मे कभी चमेली तो कभी गुलाब होगा
तुमसे शादी करेगी वह जिसका दिमाग खराब होगा
कुछ तकनीकी वजुहात के चलते नीचे छापा शेर इरफान ने reschedule किया और इक कमबखत लोचा हो गया । दरअसल ये शेर ऐसे था:
शिमले से भी ठंडे हैं तेरी जुल्फ के साए
अब काटेंगे वहीं आके मई जून वगैरा

ये शेर दो अदद दादों से नवाज़ा गया साहब मगर लोचे में वो जाती रहीं ,बहरहाल साइड बार में महफूज़ पाई जाती हैं।

Friday 23 May 2008

जनाब a.a. barqi से सुना शेर!


शिमले से भी ठंडे हैं तेरी जुल्फ के साए
काटेंगे वहीं आके मई जून वगैरह !

स्टार टी वी के हर दर्शक के दिल का शेर..



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बोतल में बोतल बोतल में पानी...
कब तक रोएगी ये तुलसी वीरानी...

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सरकार के चार साल हो गए।
मनमोहन के मन की हो गई।

अमर सिंह से प्रेम का तार जूडा।

अर्जुन भी सोनिया के हो गए ।

साथ बैठे खाने पर

गिले शिकवे भूल गए

अगले साल चुनाव है

सब आओ इनके गले लग जाओ ।

कुछ लोग हँसते हैं ,
कुछ लोग रोते हैं
कुछ ऐसे भी लोग हैं
जो न हँसते हैं, न रोते हैं ,
वो लोग सस्ते शायर होते हैं

कितना भीगे तुम

पाँच दिनों की बारिश ने खुऊब भिगोया।
इतना भिगोया की सब भीग गए।
जो सूखे रह गए , उन्हें पता ही नही चला कि दिल्ली में बारिश भी हुई ,

धोबी, गदहा और धोबिन संबन्धी एक शेर-

भाई रवि रतलामी की १६ मई २००८ को ७ बजकर ३ मिनट पर ब्लॉगवाणी में नज़र आयी पोस्ट ''तीन साल पहले के हिन्दी चिट्ठाकार और उनकी चिट्ठियाँ" से उड़ाया और उस पोस्ट में फुरसतिया जी द्वारा प्रकाश में लाया गया एक शेर- (उफ्फ़! साँस फूल गयी!!!!!!)-

तो शेर अर्ज़ है कि ...



धोबी के साथ गदहे भी चल दिये मटककर,
धोबिन बिचारी रोती, पत्थर पे सर पटककर।

Thursday 22 May 2008

मैथ मैटिक पिटाई

मैने तुझे प्यार किया तेरे बाप ने मुझे पीटा।
मैने तुझे प्यार किया तेरे बाप ने मुझे पीटा।
Sin theta by cos theta is equal to tan theta

--शैलेन्द्र 

हाले गुलिस्ता क्या होगा

नष्ट भ्रष्ट नेताओ के नाम हमारा प्रेम पत्र..........





एक उल्लु ही काफ़ी है गुलिस्ता खाक करने को "
हर साख पे उल्लु बैठा है अब हाले गुलिस्ता क्या होगा ॥

वो नादान है दोस्तो

वो हमारा इम्तेहान क्या लेगी,
मिलेगी नजर तो नजर झुका लेगी
उसे मेरी कब्र पर दिया जलाने को मत कहना
वो नादान है दोस्तो अपना हाथ जला लेगी

ज़िन्दगी की राहें मुश्किल हैं तो क्या हुआ

ज़िन्दगी की राहें मुश्किल हैं तो क्या हुआ
थोड़ा सा तुम चलो, थोड़ा सा हम ...







फिर रिक्शा कर लेंगे

(आज सुबह मिला एक एस एम एस)

Tuesday 20 May 2008

Well Played !!!

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आप ने मेरे मन से खेला
आप ने मेरे धन से खेला
आप ने मेरे तन से खेला
ख़ैर,Well Played !!!

कोइ बम फ़ट जाये

जयपुर धमाके मे काल-कलवित हुये लोगो को विनम्र श्रधांजली के साथ !!





दीपक सोच-विचार के घर से निकलो भाय ।
ना जाने किस मोड पे कोइ बम फ़ट जाये "

Monday 19 May 2008

चलो पिच्चर चलें

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तुम आ गए हो,
नूर आ गया है,
चलो तीनों पिक्चर चलें !!!!

शेर कहता हु मै !

शेर कहता हु मै जरा गौर से सुनो
मुझे नही आता किसी और से सुनो



हाथ उनके उठे थे मदद के लिये ही लेकिन"
साहिल ने उसे सलाम ए अलविदा समझा "

Sunday 18 May 2008

एक नये शायर की संभावना

मित्रो!
एक नये शायर शैलेंद्र यादव सस्ते शेरों का दरवाज़ा खटखटा रहे हैं। बानगी पर नज़र डालिये और कहिये कैसे लगे?

शादी से पहले

तकदीर है मगर किस्मत नही खुलती
ताज तो बनवा दु मगर मुमताज नही मिलती
शादी के बाद
तकदीर तो है मगर किस्मत नही खुलती
ताज तो बनवा दु मगर मुमताज नही मरती

सस्ते शेर की पहली कोशिश


चाल ज़रा तेज़ है,

अच्छाई से ना परहेज़ है,

पोज तो ऐसे देती है,

जैसे हर जगह स्टेज है।

Saturday 17 May 2008

शक O' शुबहे का शेर



सूरत की तो वो बुरी नहीं औ' सीरत हमारी भी नेक है
जाने क्यों दिल कहता है मगर की वो ' ब्लॉग I.D.' फेक' है !

Friday 16 May 2008

महंगाई के दौर में एक और फुटपाथ पे मिलने वाला सस्ता शेर


महंगाई के दौर में एक और फुटपाथ पे मिलने वाला सस्ता शेर



जिन्हे समझा था सस्ता थे शेर बड़े वो महँगे...
जिनसे अंखिया लड़ाई थी हमने यार निकले वो भेंगे

Thursday 15 May 2008

पेल-ए-खिदमत है एक घिसा-पिटा शेर:-

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(पिछली मर्तबा ससुरा ऊपर ही नज़र आ गया था, अबकी गहरे दफ़न किया है)....
तो शेर अर्ज़ है-


अजब तेरी दुनिया, अजब तेरा खेल,
छछूंदर के सर पर चमेली का तेल।

Tuesday 13 May 2008

महंगाई मार गयी

एकदम सच्ची बात फ़िराक गोरखपुरी कि कलम से ..........

घर लौट के बहुत रोये मा बाप अकेले मे
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते नही थे मेले मे

सस्ता शेर समंदर है

सस्ता शेर एक समंदर ,नदिया पढ पाता हुँ "
बाल्टी भर याद रहता है ,मग भर लिख पाता हुँ"
इस महफ़ील मे कँजुस बहुत है लोग ।
तभी तो चुल्लु भर दाद पाता हुँ ।

और अभी मुनिष जी और विजय भाई के लिये खास पेशकश गुरुरब्रह्मा कि तर्ज पर
गुरु "रम "हा ,गुरुर विस्की ,गुरुर "जीन "एश्वरा "
गुरुर साक्षात पेग ब्रह्मा ,तस्मै श्री "बियरे" नमः

भगवान आपको सदा टुन्न रखे "

और अब आखरी है इसे भी झेल लिजिये...

कोइ पत्थर से ना मारे मेरे दिवाने को "
बम से उडा दो साले पैजामे को "

Monday 12 May 2008

आपको देखकर !!

सूरज किरणे बिखेरता है !

आपको देखकर !!

फूल खुशबू छोड़ता है !

आपको देखकर !!

हम अपने दिल की क्या कहें !

हज़ारों दिल धड़कते हैं !!

आपको देखकर !!!

Sunday 11 May 2008

एक पव्वा रम तो है, हरगाम हमन अफ़ोर्ड

एक पव्वा रम तो है, हरगाम हमन अफ़ोर्ड
पैसे की काहे फिर तुमन दिखलाओ हो तड़ी

मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर

मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर
लड़कियां हंसती रहीं और चूतिया कटता गया


(आशुतोष उपाध्याय को नैनीताल की खचुवाई हुई स्मृतियों के साथ सादर)

पेश है एक प्रेमीपुंगव का एसएमएस वाला शेर

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एक अजीब-सा मंज़र नज़र आता है
हर एक कतरा समंदर नज़र आता है
कहाँ जाकर बनाऊं मैं घर शीशे का
हर एक हाथ में पत्थर नज़र आता है.

Saturday 10 May 2008

कभी कभी मेरे दिल मे ख़याल आता है
की ज़िंदगी तेरी जुल्फों के साए मे गुजरती
.तोः
..तोः

मुझे भी जुओं की शिकायत होती

पैरोडी ..... वो पास रहें या दूर रहें .....

इस आई टी युग में पेश-ऐ-खिदमत है एक पैरोडी बतर्ज़ वो पास रहें या दूर रहें .....

वो मेल करें चाहे न करें हम आस लगाए रहते हैं
इतना तो बता दे कोई हमें, क्या ..........
रिप्लाई देने मे लेज़ी वो
हफ्तों तक बात नही होती
अब तो आलम ये के ख्वाबों में
हम चैटिंग करते रहते हैं

वो मेल करें चाहे न करें हम आस लगाए रहते हैं
इतना तो बता दे कोई हमें, क्या ..........

मेलबॉक्स हमारा खाली है

हम जानते तो है हाय मगर

जब तक नेट कनेक्ट न हो जाए

हम माथा पीटते रहते हैं

Friday 9 May 2008

तुम्हारा घर जलाना चाहता हूँ .....

गिरगिट ’अहमदाबादी’ जी की एक गज़ल स्म्रूति से दे रहा हूँ , कितनी सस्ती है इसका फ़ैसला आप खुद करें । कुछ बरस पहले एक मुशायरे में सुनी थी, यदि गलती हो तो सुधारें :


अंधेरे को मिटाना चाहता हूँ
तुम्हारा घर जलाना चाहता हूँ

मै अब के साल कुरबानी करूँगा
कोई बकरा चुराना चाहता हूँ

नई बेगम ने ठुकराया है जब से
पुरानी को मनाना चाहता हूँ

और अंत में मेरा सब से पसंदीदा शेर :

मेरा धँधा है कब्रें खोदने का
तुम्हारे काम आना चाहता हूँ


Wednesday 7 May 2008

दीपक रुपिया राखिये

रहिम जी कहते थे !!
रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सुन
पानी गये ना उबरै मोती ,मानुष चुन "

पर मुझे लगता है अब इसकी व्याख्या बदल गयी है और इस दोहे को भी modify कर देना चाहिये तो नेकी और पुछ पुछ !!
ये काम हम ही कर देते है मै अपनी कहता हू आप अपनी कहियेगा ...

दीपक रुपिया राखिये बिन रुपिया सब बेकार "
रुपिया बिना ना चिन्हे बॆटा , नेता ,यार "

Monday 5 May 2008

कलजुग में दारू मिली

रामजनम मे दूध मिला ,कृषण जनम मे घी /
कलजुग मे दारू मिला सोच समझ कर पी //

शेर नंबर 420

ख्वातीनो हजरात आज सस्ते शेर ने ४२० न. का आकडा छु लिया है और यह ४२० नंबरी शेर पढने का हसीन मौका हमे मिल
गया है । किसी ने सही कहा है अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान "

हमारी तरह शेर पढो ,नाम हो जायेगा "
अँडे टमाटर बरसेंगे खुब
सुबह के नाश्ते का इंतजाम हो जायेगा "

तो शेर अर्ज है भगवान राम तुलसी दास और उनके चेले चपाटो (जिनमे मै भी शामील हूँ)से क्षमा प्रार्थना के साथ....

चित्रकुट के घाट पर भये पँचर के भीड "
तुलसीदास पँचर घीसे हवा भरे रघुवीर

ज़िन्दगी में हमेशा नये लोग मिलेंगे..............

ज़िन्दगी में हमेशा नये लोग मिलेंगे
कहीं ज़्यादा तो कहीं कम मिलेंगे
ऐतबार ज़रा सोचकर करना
मुमकिन नहीं, हर जगह तुम्हें हम मिलेंगे

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लोग अपना बना के छोड़ देते हैं
रिश्ता गैरों से जोड़ लेते हैं
हम तो एक फूल भी न तोड़ सके
लोग तो दिल भी तोड़ देते हैं

दहेज मांगोगे तो....

दोस्तो, ये शेर चश्मदीद गवाह होने का नतीजा है. दरअसल हमारे एक मित्र दूल्हा बन जब अपनी बारात ले कन्या (अब हमारी भाभी) के दर पर पहुंचे तो दीवार पर एक ख़तरनाक शेर लिखा देखा. मामला बिगड़ते-बिगड़ते बचा. आनन-फानन में यह शेर दीवार से मिटा दिया गया. बाद में पता चला कि यह दूल्हे मियाँ की उन 5 सालियों की करतूत थी जो सनी देओल की जबरदस्त फैन थीं और 'ग़दर' फ़िल्म के गहरे असर में थीं. शेर मुलाहिजा फ़रमाइए:-

दूध मांगोगे तो खीर देंगे,
दहेज मांगोगे तो चीर देंगे.

Saturday 3 May 2008

मयखाने का असर

शेर छुप कर शिकार नही ्करते,बुज्दील सीने पे वार नही करते "
हम बेधडक पेलते जाते है शेर ,हम दाद का इंतजार नही करते "

तो आप सबो के लिये आदाब बजा के लाता हूँ, अपनी औकात पे आता हूँ और फ़रमाता हूँ !!

गर हिम्मत है तो ताज महल को हिला के देख "
नही है तो आ बैठ दो पैग मार "
और ताज महल को हिलता हुआ देख "
इस जीवन में प्यारे गर होना है तुझे सफल
लोग पकौडे तलें तेल में, तू पानी में तल
मुझको मेरी नज्म सूना के, वह मुझसे हो बोले
कहिये कैसी लगी आपको मेरी ने ग़ज़ल

Friday 2 May 2008

न जाने किस गली में ...


मोहब्बत हो गई है डाकु सुल्ताना की बेटी से
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ।

अबे देखता क्या है..

नमस्कार दोस्तो..

पेले खिदमत है यारो शेर मेरे सस्ते
महँगाई के दौर में भी है ये हंसते..

अब तक सस्ती टिप्पणिया ही देता रहता था.. सोचा इस महँगाई के दौर में आप लोगो को थोड़ी राहत तो दे ही दु... कुछ सस्ते शेरो से तो पेले खिदमत है हमारा पहला सस्ता शेर...



"इंसान की शॅक्ल में खड़ा है भालू...
अबे देखता क्या है ये है राम रोटी आलू.."

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इक गीदड़भभकी वाला शेर, इझा आईला!

भाइयो, अबकी गीदडभभकी नहीं; दुर्घटनावश मंहगा शेर हो गया है क्योकि भाई रवीश के बाद अब रवि रतलामी भी हमारे दीदा-ओ- दाद-ए-परवर हैं. उनसे हमारा पिछले जन्म (ब्लॉग से पूर्व) का नाता नहीं है.
शेर मर्ज़ किया है के-


अभी देहली में आके हम पूरा इक ड्रम पी जावैंगे,
फिर उगने 'भास्कर' तक पूरा 'हिन्दुस्तान' देखेगा।


-विजय ड्रमसोखवी। (ऋषि अगस्त्य का वंशज हूँ. हाँ!)

इरफ़ान भाई, ५ बोतल पीके ट्राई किया है. कम हो गया है तो बताइए. और २-४ लीटर और जमा लूँ.

आखिर को शेर सस्ता ही निकला. लाहौल विला कुव्वत!

Thursday 1 May 2008

रवि रतलामी ने भेजी दैनिक भास्कर की कतरन


अभी पिछले ही हफ्ते दैनिक हिंदुस्तान का एक कॉलम सस्ता शेर को समर्पित था और आज भाई रवि रतलामी ने मुझे दैनिक भास्कर की एक कतरन भेजी है जिसका भी एक स्तंभ सस्ता शेर के नाम किया गया है। हमने रवि भाई को आपकी तरफ़ से आभार और अपनी तरफ़ से आमंत्रण भेज दिया है. इन दोनों अख़बारों की तारीफ़ में एक क़सीदा तो काढिये भाई विजयशंकर!



कतरन को ठीक से पढने के लिये कर्सर उस पर ले जाकर डबल क्लिक कीजिये.

अब पेल-ए-खिदमत है 'थ्योरी ऑफ़ मिसेज/मिस. अंडरस्टैंडिंग' का शेर:-

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पिस्टल से आम तोड़ दें, निशाना अचूक था,
पर आ गिरी बटेर, क्या ग़ज़ब का फ्लूक था.
हम समझे थे सड़क पे सिक्का पड़ा हुआ है
नज़दीक जाके देखा, तो बेग़म का थूक था।
-विजय चित्रकूटवी

थियोरी ऑफ रिलेटिविटी का तीसरा शेर


अभी तक आपने थियोरी आफ रिलेटिविटी के दो शेर सुने ।
आइंस्‍टीन ने थियोरी ऑफ रिलेटिविटी यानी सापेक्षता का सिद्धान्‍त
किन अवलोकनों के सहारे दिया था, हम नहीं जानते ।
लेकिन थियोरी ऑफ रिलेटिविटी की वैज्ञानिक शायरी करते हुए
'रेडुआई शेर' को मज़ा आ रहा है ।
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मिलो ना तुम तो हम घबराएं, मिलो तो आंख चुराएं ।
मिलो जो तुम तो भी घबराएं तो भी आंख चुराएं ।।
हमें क्‍या हो गया है ।।
अरे क्‍या हो गया है ।।

*चित्र साभार : www.artists.org से ।