Thursday 31 July 2008

घुड़की जो दिखाओ...

ये एक मित्र ने सुनाई थी-

मेरा ये बौस हाय रे मर क्यूँ नहीं जाता,
सर पे खड़ा है सीट पर क्यूँ नहीं जाता,

जब सामने दारू है और हाथ में पत्ते,
तुम पूछते हो कि वो घर क्यूँ नहीं जाता,

फिर लाया इम्तिहान में तू मुर्गी का अन्डा,
ओ बेहया तू डूब के मर क्यूँ नहीं जाता,

दो-चार किलो सौंफ़ तो मैं फ़ाँक चुका हूँ,
दारू का मेरे मुँह से असर क्यूँ नहीं जाता,

झाँका जो एक बार उसकी माँ थी सामने,
उस दिन से मैं अपनी छत पर नहीं जाता,

सीखा है ज़ीस्त से सबक हमने ये यारों,
घुड़की जो दिखाओ तो बन्दर नहीं जाता...

Wednesday 30 July 2008

श्वान हल्द्वानवी का बासी क़लाम

सायरी के अब्बू के अब्बू के अब्बू ... उर्फ़ कुमाऊंनी ज़ुबान में खुड़बुबू होते थे मरहूम मीर बाबा. आज देखिये हल्द्वानी का श्वान उनके दर पे क्या फैला आया. तमाम माफ़ीनामों के साथ पारी डिक्लेयर करते हुए कि ये लास्ट मुआफ़ीनामा ख़ुदा-ए-सुख़न के दर पे कह चुकने के बाद आज से किसी शायर-ओ-फ़ायर से न माफ़ी मांगूंगा न हाय अथवा बाय कहूंगा. सस्ता हूं सो सस्ता रहूंगा.

हम हुए, तुम हुए कि श्वान हुए
सस्ता कहने को ग़ज़लख़्वान हुए

-श्वान हल्द्वानवी

Monday 28 July 2008

सौंदर्य वर्णन !

कल से दो दिन के लिये हैदराबाद जा रहा हूँ, चिरकिन मियाँ से मिलने, शाहिद कव्वाल से मिलने का भी प्रोग्राम है ( आप लोग शायद न जानते हों उन्हें, बहुत सस्ता लिखते हैं, पर तबीयत ज़रा रंगीन है, इसलिये उनके अशआर यहाँ नहीं लिख सकता) सोचा कोटा पूरा कर के जाऊँ। ये छप्पय देखिये...किस अलौकिक सौन्दर्य का वर्णन है-

एक नारी अपूरब देखि परी कटि है जेंहि की धमधूसर सी,
गज सुन्ड समान बने भुज हैं तामें अन्गुरी लगि मूसर सी,
प्रति अंग में रोम उगे तृन से अरु दीठी बिराजत ऊसर सी,
निसि भादव के सम केस खुले करिया मुख ताड़का दूसर सी..

जब से बेगम ने मुझे मुर्गा बना रक्खा है....

हक़ीम नासिर साहब से माफ़ी की गुज़ारिश के साथ,राम रोटी आलू के उन पाठकों को समर्पित,जो शादी-शुदा हैं (मैं छड़ा होने के नाते इस मज़े से नावाकिफ़ हूँ)-

जब से बेगम ने मुझे मुर्गा बना रक्खा है,
मैनें आँखों की तरह सर भी झुका रक्खा है,
बर्तनों आज मेरे सर पे बरसते क्यूँ हो,
मैनें तुमको तो हमेशा से धुला रक्खा है,
पहले बेलन ने बनाया था मेरे सर पे गूमड़,
और अब चिमटे ने मेरा गाल सजा रक्खा है,
खा जा इस मार को भी हँसकर प्यारे,
बेगम से पिटने में क़ुदरत ने मज़ा रक्खा है..

मुझ से कुत्तों सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग

इस ब्लास्फ़ेमी के लिए मुझे कोई मुआफ़ नहीं करेगा. पर क्या कीजिए हमें तो यूं भी ट्रबल और वूं भी ट्रबल. बाबा फ़ैज़, आप तो बुरा न मानना प्लीज़. बच्चे की नादानी है, सो माफ़ी की एप्लीकेशन भेजता हूं साथ साथ:

मुझ से कुत्तों सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग

मैं ने समझा था कि तू है तो कुकुरहाव है हयात
तेरा मुंह है तो ग़म-ए-मुर्ग़ का लफड़ा क्या है
अपने चूरन से है पेटों में भोजन का सवाद
तेरी चांपों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाये तो पड़ोसी की चूं हो जाये
मूं न था मैं ने फ़क़त चाहा था मूं हो जाये
और भी दुम हैं ज़माने में मुझ कुत्ते के सिवा
बोटियां और भी हैं बकरे की रानों के सिवा

मुझ से कुत्तों सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग

अनगिनत कुतियों के तारीक-ओ-लतीफ़ाना जिस्म
फ़ैशन-ए-आज-ओ-माज़ी के दुत्कारे हुये
जा-ब-जा भूंकते कूचा-ओ-बाज़ार में तमाम क़िस्म
बोटियां चाबते औ ना कभी नहलाये हुये
जिस्म पकते हुये अमरूद के सड़े कीड़ों से
मिर्च लगती हुई बाज़ार आई हूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी जाहिल है तेरा श्वान मग़र क्या कीजे
और भी दुम हैं ज़माने में मुझ कुत्ते के सिवा
बोटियां और भी हैं बकरे की रानों के सिवा

मुझ से कुत्तों सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग

-श्वान हल्द्वानवी

Saturday 26 July 2008

बम रहने दे!

पोपुलर मेरठी की कलम से-

मैं हूँ जिस हाल में ऐ मेरे सनम रहने दे
तेग़ मत दे मेरे हाथों में क़लम रहने दे
मैं तो शायर हूँ मेरा दिल है बहोत ही नाज़ुक
मैं पटाके ही से मर जाऊँगा, बम रहने दे

महबूब वादा कर के भी आया न दोस्तो
क्या क्या किया न हम ने यहाँ उस के प्यार में
मुर्ग़े चुरा के लाये थे जो चार "पोपुलर""
दो आरज़ू में कट गये, दो इन्तज़ार में"

और एक मुर्गे की कहानी-

जिस दिन हुआ पठान के मुर्ग़े का इन्तक़ाल,
दावत की मौलवी की तब आया उसे ख़याल,
मुर्दार मुर्ग़ की हुई मुल्लाह को जब ख़बर,
सारा बदन सुलग उठा, ग़ालिब हुआ जलाल,
कहने लगे खिलाओगे नरम गोश्त?
तुम को नहीं ज़रा भी शरियत का कुछ ख़याल
मुर्दार ग़ोश्त तो शरियत में है हराम,
जब तक न ज़िबाह कीजिये, होता नहीं हलाल,
फ़तवा जब अपना मौलवी साहब सुना चुके,
झुन्झला के ख़न ने किया तब उन से ये सवाल,
कैसी है आप की ये शरियत बताईये,
बंदे को कर दिया है ख़ुदा से भी बा-कमाल,
अल्लाह जिस को मार दे, हो जाये वो हराम,
बन्दे के हाथ जो मरे, हो जाये वो हलाल...

अब इसे क्या कहेंगे?

इसे चचा गालिब के पड़ोसी ने सुनाया था-

"बड़ी अम्मा के मरने पर बड़े किस्से बयाँ निकले,
जहाँ जहाँ क़बर खोदी,वहीं पे अब्बा मियाँ निकले"

स्टाक क्लीयेरेंस

तो आने वाला प्रोग्राम ऐसा है कि कुवैत की गर्मी से कुछ दिन का आराम लेकर साड्डा इंडिया के बरसात का मजा लेना है इसलिये आने वाले दिनो मे हरी हरी घास ,बहता हुआ पानी ,खेत ,हल ,तालाब, भैस ,कीचड ,स्कुल ,इत्यादि देखने का इरादा है इसलिये कंपोटर की खिटपिट बंद करने से पहले अपने पास बजा हुआ स्टाक क्लीयर करके हम अपने इस बोझ से मुक्त होना चाहते है तब प्रस्तुत है पहले स्टाक क्लीयेरेंस सेल का पहला माल !!

अल्लाह के घर से कुछ गधे फ़रार हो गये
उनमे से कुछ पकडे गये और कुछ अपने यार हो गये ॥

एक और ....

मेरा कुत्ता मुझसे रुठ गया
जाके गंदे नाले मे डुब गया
और डुबते हुये बोला
या अल्लाह अब ये ना सहेंगे
एक ही घर मे दो नही रहेंगे ॥

Friday 25 July 2008

महाभारत स्टा‍इल

भिलाई छ्त्तीसगढ के एक खास हास्य कवि है श्री सुरेंद्र दुबे उनकी कुछ लाइने पेश कर रहा हुँ जो मुझे याद है ॥ संदर्भ यह है कि एक परिवार ने यह निश्चय किया कि जो भी कहेंगे महाभारत शैली मे कहेंगे !!अब सुबह का दृश्य है पत्नी पति को उठा रही है ॥

आर्य पुत्र उठीये अब तक शैय्या पर कैसे है
डार्लींग तुम्हारे पर्स मे चिल्हर पैसे है
सुबह से दुध वाला चिल्ला रहा है
चिल्ला-चिल्ला के हस्तीनापुर का सिहांसन हिला रहा है ॥

दुसरा सीन देखीये जब शादीशुदा लाला भिष्मपितामह की स्टाईल मे मर रहा है !!

मै जा रहा हुँ माते
बंद कर देना मेरे बैंक के चालु खाते ॥
मै दुर्योधन की हैंडराईटींग से डर रहा हुँ॥
शक्कर का व्यापारी हुँ,डा‍इबिटीज से मर रहा हुँ ॥

Thursday 24 July 2008

रितेश की एक सस्ती ग़ज़ल

जो मिले उल्लू बनाते जाइये,
गुलों के भी गुल खिलाते जाइये,
शर्म की चादर उतारें,फेंक दें,
खूब गुलछर्रे उड़ाते जाइये,
शान से चाँदी का जूता मार कर,
काम सब अपने बनाते जाइये,
गर्ज़ हो तो बाप गधे को कहें,
अन्यथा आँखें दिखाते जाइये,
झाँकिये मत खुद गिरेबाँ में कभी,
गैर पर उँगली उठाते जाइये,
दिन नहीं बीड़ा उठाने के रहे,
शौक़ से बीड़ा चबाते जाइये...

आज फिर रिक्त स्थान की पूर्ति करें- अमा बदौलत शेर इलाहाबाद स्कूल का समझते हैं

अश्लील सोच वालों से तौबा... हिंट के लिए बता दूँ कि लफ़्ज बहुत छोटा है...



ऊऊऊऊऊऊऊऊ
ऊऊऊऊऊऊऊन
गूऊऊऊन
ऊऊऊऊऊन
ऊऊऊऊओन
ऊऊऊऊओन
ऊऊऊऊन
नमस्तुभ्यम..........
ऊऊऊऊऊऊऊऊऊम
ऊऊऊऊऊऊऊऊऊओम


रिक्त स्थान की पूर्ति करें---

सरकार ने जिस शख्स को जो काम दिया था
उस शख्स ने उस काम की माँ ----- के रख दी!

Tuesday 22 July 2008

सस्ते शेर ने एक दुर्घटना टाली

अरबी महफ़ील मे मेरे हिन्दी दोस्त को गाना गाने कि तलब चढी मैने उसे यह अपराध करने से सज्जनता पुर्वक रोका कहा दोस्त आप गायेंगे तो लोग बेहोश हो सकते है ,पागल या उन्मादी हो सकते है ,भुकंप आने का भी खतरा है ,पर वह नही माना तो उसे तुरंत गढ कर एक ऐसा सस्ता शेर सुनाया कि उसने अपनी साबुत हड्डीयो के सदके अपनी यह जिद्द छोड दी इस प्रकार सस्ते शेर ने एक भयंकर दुर्घटना से बचाया ॥

तो पेशे खिदमत है वह गीता सार जो हमने अपने दोस्त से कही !!

हम तो दोस्त है
तुम्हारा गाना बजाना भी झेल जायेंगे
पर गर उन्होने तुम्हे बजा दिया
तो हम सिर्फ़ ताली बजाते रह जायेंगे

Sunday 20 July 2008

हिन्दी बचाओ

युवक युवतीयो के अगाध अंग्रेजी प्रेम से क्षुब्ध ॥
एक युवक का भाषण सुनकर मै हो गया मुग्ध ॥

उसने हवा मे हाथ लहराया और जोरदार आवाज मे फ़रमाया ॥
लेडीस एंड जेंटलमेन इंडिया हमारी कंट्री और हम इसके सिटीजेन ॥

बट आज की यंग जनरेशन वेन‍एवर माउथ खोलती है ॥
तो ओनली एंड ओनली इंग्लीश बोलती है ॥

हमे इंग्लीश हटाना है हिन्दी फ़ैलाना है
तभी मेरे और भारत मां के सपने होंगे सच
थैंक्यु वेरी मच ,थैंक्यु वेरी मच ॥

Friday 18 July 2008

अहमद फ़राज़ को श्रद्धांजलि


खिचड़ी ही सही कुछ तो पकाने के लिये आ,
आ तू ही मेरी दाल गलाने के लिये आ,
पहनी थी जिसमें कभी मैनें ही अंगूठी,
आ मुझको उसी उँगली पे नचाने के लिये आ,
तू भी तो कभी देख मेरे हाथों का जादू,
तू भी तो कभी मुझसे खुजाने के लिये आ,
रो रो के तेरी याद में टब भर दिये मैनें,
ऐ क़ह्त ज़दा अब तो नहाने के लिये आ...

Sunday 13 July 2008

न हम झांकें न वो झांकें


अपनी खिड़की से वो झांके
अपनी खिड़की से हम झांके
लगा दो आग खिड़की में
न हम झांकें न वो झांकें


Saturday 12 July 2008

शेर नम्बर ५००

सस्ते शेर की बुलंदियों को सलाम

पेश -ऐ- खिदमत है एक शेर यह शेर नम्बर/ पोस्ट नम्बर ५०० है पोस्ट के मुताबिक
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ख़ुद को कर बुलंद इतना,
की हिमालय की चोटी पे जा पहुचे !
और खुदा तुमसे ये पूछे,
अबे गधे अब नीचे उतरेगा कैसे !!
--शैलेन्द्र 

Friday 11 July 2008

सस्ते शेर नहीं मिलते ....

पिछले कई दिनों से छाये सन्नाटे पर ...

राम खड़े हैं प्रतीक्षा में शबरी के बेर नहीं मिलते
इस मंहगाई के जमाने में सस्ते शेर नहीं मिलते ।

Tuesday 8 July 2008

तसव्वुरात की परछाइयां

मरहूम साहिर लुधियानवी और गुरुदत्त से दण्डवत क्षमायाचना के साथ



मैं धूल फ़ांक रहा हूं तुम्हारे कूचे में
तुम्हारी टांग मरम्मत से दुखती जाती है
न जाने आज तेरा बाप क्या करने वाला है
सुबह से टुन्न हूं लालटेन बुझती जाती है

कुत्तों के सरदार की सायरी

उनकी गली के चक्कर इतने काटे, कि कुत्ते हमारे यार हो गए
वो तो हमें नहीं मिली, मगर हम कुत्तों के सरदार हो गए

रदी शेर पर एक और ज़्यादा रद्दी शेर ...

अशोक पांडे की पंक्ति "हो सके तो हर जगह मुमताज बनाते चलो" से प्रेरित ..

शाहजहाँ से उन की बेगम नाराज लगती है
क्यों कि हर मोहतरमा उन्हें मुमताज़ लगती है।
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Monday 7 July 2008

रद्दी शेर

एस एम एस से पाया करकट-

सफ़र लम्बा है बहुत, दोस्त बनाते चलो
दिल मिले या ना मिले हाथ मिलाते चलो
कंगलों से नहीं शाहों से बनता है ताजमहल
हो सके तो हर जगह मुमताज बनाते चलो

Sunday 6 July 2008

शेर गौर फरमाए

शेर गौर फरमाए.............. की
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------------------बहार आने से पहले खिजा आ गई,
बहार आने से पहले खिजा आ गई, दो फूल खिलने से पहले बकरी खा गई । ।
--शैलेन्द्र