इस ब्लास्फ़ेमी के लिए मुझे कोई मुआफ़ नहीं करेगा. पर क्या कीजिए हमें तो यूं भी ट्रबल और वूं भी ट्रबल. बाबा फ़ैज़, आप तो बुरा न मानना प्लीज़. बच्चे की नादानी है, सो माफ़ी की एप्लीकेशन भेजता हूं साथ साथ:मुझ से कुत्तों सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो कुकुरहाव है हयात
तेरा मुंह है तो ग़म-ए-मुर्ग़ का लफड़ा क्या है
अपने चूरन से है पेटों में भोजन का सवाद
तेरी चांपों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाये तो पड़ोसी की चूं हो जाये
मूं न था मैं ने फ़क़त चाहा था मूं हो जाये
और भी दुम हैं ज़माने में मुझ कुत्ते के सिवा
बोटियां और भी हैं बकरे की रानों के सिवा
मुझ से कुत्तों सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग
अनगिनत कुतियों के तारीक-ओ-लतीफ़ाना जिस्म
फ़ैशन-ए-आज-ओ-माज़ी के दुत्कारे हुये
जा-ब-जा भूंकते कूचा-ओ-बाज़ार में तमाम क़िस्म
बोटियां चाबते औ ना कभी नहलाये हुये
जिस्म पकते हुये अमरूद के सड़े कीड़ों से
मिर्च लगती हुई बाज़ार आई हूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी जाहिल है तेरा श्वान मग़र क्या कीजे
और भी दुम हैं ज़माने में मुझ कुत्ते के सिवा
बोटियां और भी हैं बकरे की रानों के सिवा
मुझ से कुत्तों सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग
-श्वान हल्द्वानवी