Thursday 25 December 2008

ये दिल है, ये जिगर है, ये कलेजा..

मुशायरे में एक शायर ने अपना क़लाम सुनाते हुए पढा-

"ये दिल है, ये जिगर है, ये कलेजा"

गौर फ़रमाएं-

"ये दिल है, ये जिगर है, ये कलेजा",

"ये दिल है, ये जिगर है, ये कलेजा",


लोगों में से किसी ने आवाज़ उठाई-


"खस्सी लाया है सौगात क्य-क्या"

Wednesday 17 December 2008

बुढ़ापे की ग़ज़ल!!

ऐसा नहीं के उनसे मोहब्बत नहीं रही
जज़्बात में वो पहले सी शिद्दत नहीं रही

सर में वो इन्तज़ार का सौदा नहीं रहा
दिल पर वो धड़कनों की हुकूमत नहीं रही

पैहम तवाफ़-ए-कूचा-ए-जाना के दिन गये
पैरों में चलने फिरने की ताक़त नहीं रही

कमज़ोरी-ए-निगाह ने संजीदा कर दिया
जलवों से छेड़-छाड़ की आदत नहीं रही

चेहरे की झुर्रियों ने भयानक बना दिया
आईना देखने की भी हिम्मत नहीं रही

अल्लाह जाने मौत कहां मर गई 'ख़ुमार'
अब मुझको ज़िंदगी की ज़रूरत नहीं रही

-- ख़ुमार बाराबंक्वी