Friday 27 March 2009

इत्ता गंदा मत सोचा कर...

जनाब फ़रहत शहज़ाद साहब से माफ़ी की गुज़ारिश के साथ-

उल्टा सीधा मत सोचा कर,
पिट जावेगा मत सोचा कर,

'भ' से भूत भी हो सकता है,
इत्ता गंदा मत सोचा कर,

दिन में बीसों बार फ़टी है,
इसका फ़टना मत सोचा कर,

शाम ढले घर भी जाना है,
अद्धा पव्वा मत सोचा कर,

लड़की को तू छेड़ के प्यारे,
चप्पल जूता मत सोचा कर,

शे'र कहा है दाद तो दीजे,
महँगा सस्ता मत सोचा कर..

Tuesday 24 March 2009

बिना ऊंट के रेगिस्तान मुकम्मल नहीं होता

बिना ऊंट के रेगिस्तान मुकम्मल नहीं होता
बिना मुर्दे के कब्रिस्तान मुकम्मल नहीं होता
बिना मुश के पाकिस्तान मुकम्मल नहीं होता
और, तारीख गवाह है, बुत परस्तों के लिए
बिना बुद्ध के बामियान मुकम्मल नहीं होता
हर अच्छाई के बाद बुराई भी जरूरी है, क्योंकि
बिना मुफ्तखोरी के शैतान मुकम्मल नहीं होता
शाया शेर को सराहें न स‌ही, पर यह भी स‌ोचें
बिना दाद के कोई खाकसार मुकम्मल नहीं होता
-Nadeem Akhtar
Public Agenda

Tuesday 10 March 2009

फूल

फूल लेकर फूल आया, फूलकर मैने कहा,
फूल का तुम क्या करोगे , तुम तो खुद ही फूल हो।

Monday 9 March 2009

किसको सींचूँ सोचे पानी?

बच्चों पर आ गई जवानी,
टी.वी. तेरी मेहरबानी,

खर-पतवार उगे गेहूँ में,
किसको सींचूँ सोचे पानी,

वो दिल्ली का हल्वा लाया,
खाने वाली हुई दिवानी,

राम सनेही भूखे बैठे,
रावण-प्रिय खाते गुडधानी,

चूहों ने संगठन कर लिया,
फेल हो गई चूहेदानी,

चूहा बनकर जिये आदमी,
घर में बीवी की कप्तानी,

बदल गये हैं तेवर अब तो,
साथ बीन के भैंस रँभानी...