Saturday 26 December 2009

देके अमन का पैगाम करते हैं!!

सुबह करते हैं, शाम करते हैं,
देके अमन का पैगाम करते हैं,

हमें ज़रूरत ही नहीं पैखानों की,
खुली हवा में खुलेआम करते हैं,

हम चाहते हैं देश में रेल बंद हो,
कि पटरियों पे लोग तमाम करते हैं,

जब कभी मैखाने में चिल्ला पडे,
काँपकर साकी-ओ-जाम करते हैं,

क्या हुआ अगर तूने बेवफ़ाई की,
हम भी लेके तेरा नाम करते हैं...

-रितेश :)