Tuesday 17 May 2011

मैं शिकार हूँ किसी और का...

मैं शिकार हूँ किसी और का मुझे मारता कोई और है,
मुझे जिसने बकरी बना दिया वो भेड़िया कोइ और है ।

कई सर्दियॉ भी ग़ुज़र गईं मैं उसके काम न आ सका,
मैं लिहाफ़ हूँ किसी और का मुझे ओढ़ता कोई और है ।

मुझे चक्करों में फँसा दिया मुझे इश्क ने तो रुला दिया,
मैं माँग हुँ किसी और का मुझे मांगता कोइ और है ।

मेरे रोब में तो वो आ गया मेरे सामने तो वो झुक गया,
मुझे पिट के ये ख़बर हुई मुझे पीटता कोइ और है ।

जो गरजते हैं वो बरसते हों कभी हम ने ऐसा सुना नहीं,
यहाँ भोंकता कोइ और है और काटता कोइ और है ।

अज़ब आदमी है ये “राज” भी उसे बेक़सूर ही जानिए,
ये डाकिया है जनाबे मन, इसे भेजता कोइ और है...

तुझे देखने को..

तुझे देखने को ये दिल बेताब है,
पर खिड़की पे खड़ा तेरा बाप है।

कभी इत्तेफ़ाक़ से जो नज़र मिल भी जाए,
तो समझो सारा दिन खराब है।

कभी उसकी बहनें कबाब में हड्डी थीं,
मगर अब हड्डी में फँसा कबाब है।

मुझे डरा धमका के सीधा कर लेंगे,
तेरे भाइयों को आया ये ख्वाब है।

लाओ मेरे छुट्टे पैसे वापस कर दो,
अभी चुकाना तुम्हें बहुत हिसाब है।

दिलबर क्या यही हैं तेरे प्यार की सौगातें?
बिखरे बाल, घिसे जूते, फटी जुर्राब है।

घर वाले गर पूछें कहाँ जा रही हो?
कहना सहेली की तबीयत खराब है।

आइ हो , दो चार घड़ियाँ बैठो तो सही,
रिक्शे का ड्राइवर कौन सा नवाब है।

तुम खुद को समझते क्या हो?
याद उसका, यही मेरा जवाब है॥