Wednesday 7 September 2016

खाट पड़ी है बिस्तर गोल

इष्ट देव सांकृत्यायन

खाट पड़ी है बिस्तर गोल
बोल जमूरा जय जय बोल
आते ही नज़दीक चुनाव
शुरू हो गए बचन बोल

सबका दुख वे समझ रहे हैं
जिनके बदल गए हैं रोल.
खिसक गई ज़मीन तो काहें
घिस रहे हैं झुट्ठै सोल.

कसरत कोई कितनी कर ले
मन है सबका डावाँडोल
अपने चरित्र का कोई न ठेका
खोल रहे सब सबकी पोल

चाहे जिसकी देखो पंजी
सबमें हुई है झोलमपोल
भाँग कुएँ में कौन मिलाए
बरस रहा है गगन से घोल

अपने ढंग से बजा रहे हैं
सभी एक दूसरे का ढोल
किसी के सिर पर ताज बिठा दे
जनता कितनी है बकलोल

 



Tuesday 19 November 2013

न उठनी थी , न उट्ठी कभी तारीफ़ मेरे अशआर पर

 इसलिए भरोसा है मेरा अब तो  परवरदिगार पर

                                                     --मैख़ान्वी

Tuesday 12 November 2013


मरता नहीं शेरों का कीड़ा वो अब भी कभी कुलबुलाता है

इस थक चुके कारवाँ-पस्त को यही जज़्बा है जो चलाता है



                                                                                           --तस्वीर औ अशआर दोनों मयख़ान्वी के

कोई चैट व्यस्त, कोई ब्लौग मस्त , तो कोई मस्त है अपनी ट्वीटों में

 

कोई-कोई फ़ेसबुकिया रंग-रसिया हैं , यहाँ घर-घर, दफ़्तर और स्ट्रीटों में
चाहे अनचाहे शायद ही कभी भूले से इधर झाँक पाता हूँ

ऐ ब्लौगिस्तान इक तेरी ही कमी आज ज़िन्दगी में पाता हूँ

Tuesday 27 December 2011

पॉपुलर मेरठी का क़लाम

अजब नहीं है जो तुक्का भी तीर हो जाए
फटे जो दूध तो फिर वो पनीर हो जाए
मवालियों को न देखा करो हिकारत से
न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाए

Tuesday 17 May 2011

मैं शिकार हूँ किसी और का...

मैं शिकार हूँ किसी और का मुझे मारता कोई और है,
मुझे जिसने बकरी बना दिया वो भेड़िया कोइ और है ।

कई सर्दियॉ भी ग़ुज़र गईं मैं उसके काम न आ सका,
मैं लिहाफ़ हूँ किसी और का मुझे ओढ़ता कोई और है ।

मुझे चक्करों में फँसा दिया मुझे इश्क ने तो रुला दिया,
मैं माँग हुँ किसी और का मुझे मांगता कोइ और है ।

मेरे रोब में तो वो आ गया मेरे सामने तो वो झुक गया,
मुझे पिट के ये ख़बर हुई मुझे पीटता कोइ और है ।

जो गरजते हैं वो बरसते हों कभी हम ने ऐसा सुना नहीं,
यहाँ भोंकता कोइ और है और काटता कोइ और है ।

अज़ब आदमी है ये “राज” भी उसे बेक़सूर ही जानिए,
ये डाकिया है जनाबे मन, इसे भेजता कोइ और है...

तुझे देखने को..

तुझे देखने को ये दिल बेताब है,
पर खिड़की पे खड़ा तेरा बाप है।

कभी इत्तेफ़ाक़ से जो नज़र मिल भी जाए,
तो समझो सारा दिन खराब है।

कभी उसकी बहनें कबाब में हड्डी थीं,
मगर अब हड्डी में फँसा कबाब है।

मुझे डरा धमका के सीधा कर लेंगे,
तेरे भाइयों को आया ये ख्वाब है।

लाओ मेरे छुट्टे पैसे वापस कर दो,
अभी चुकाना तुम्हें बहुत हिसाब है।

दिलबर क्या यही हैं तेरे प्यार की सौगातें?
बिखरे बाल, घिसे जूते, फटी जुर्राब है।

घर वाले गर पूछें कहाँ जा रही हो?
कहना सहेली की तबीयत खराब है।

आइ हो , दो चार घड़ियाँ बैठो तो सही,
रिक्शे का ड्राइवर कौन सा नवाब है।

तुम खुद को समझते क्या हो?
याद उसका, यही मेरा जवाब है॥

Monday 25 April 2011

I can't find my blog on the Web, where is it?

I can't find my blog on the Web, where is it?

Saturday 26 February 2011

अंधेरे ने कभी रोशनी नहीं देखी

अंधेरे ने कभी रोशनी नहीं देखी

ज़िन्दगी ने कभी मौत नहीं देखी

 वो कहते है मिट जाती है दूरियों से दोस्ती,

शायद उन्होंने हमारी दोस्ती नहीं देखी

इस शेर को सस्ता नहीं कहते .....तो कहते क्या हैं ?

दोस्तों की महफ़िल सजे ज़माना हो गया ।


लगता है खुल के जीये ज़माना हो गया ॥


काश कहीं मिल जाय वो काफ़िला दोस्तों का ।


अपनों से बिछड़े अब ज़माना हो गया ॥

Saturday 28 August 2010

दोस्ती...

वादा तो नहीं करते दोस्ती निभाएंगे,
कोशिश यही रहेगी आपको नहीं सतायेंगे,
ज़रूरत पड़े तो दिल से पुकारना हमें,
पैखाने में रहे तो बिना धोये आयेंगे...

Sunday 22 August 2010

पर सपने उनके आये तो रातों का क्या कुसूर

सस्ते शेर में एक शेर गुडनाइट वाला.......जिसे किसी अनाम ने लिखा है आज सस्ते शेर में चिपका रहा हूँ।



नज़रें उन्हें देखना चाहें

 तो उनका क्या कुसूर ?

हर वक़्त खुश्बू उनकी आये

 तो सांसों का क्या कुसूर ?

वैसे तो सपने पूछ कर  नहीं आते,

पर सपने उनके आये तो रातों का क्या कुसूर?

Tuesday 6 April 2010

खुदा कसम.... बहुत ही सस्ता

मच्छरों ने हाय ये क्या कांड कर डाला,
अच्छे भले आदमी को भांड कर डाला....
दफ्तर की उलझने क्या पहले ही कुछ कम थीं,
गृहस्थी के बोझ ने तो हमें सांड कर डाला....
देखा जो हमने दोस्तों को तितलियों के साथ,
अपने भी दिल ने फौरन डिमांड कर डाला.......
किस्मत थी लेकिन फूटी, बीवी की पड़ी जूती,
बैठे बिठाए हमने लचांड कर डाला।

Wednesday 13 January 2010

डाली..

डाली डाली डाली हमने छान डाली,
मगर ज़ालिम ज़माने ने काट डाली,
वो डाली, जिसपे हमने नज़र डाली!!

Saturday 26 December 2009

देके अमन का पैगाम करते हैं!!

सुबह करते हैं, शाम करते हैं,
देके अमन का पैगाम करते हैं,

हमें ज़रूरत ही नहीं पैखानों की,
खुली हवा में खुलेआम करते हैं,

हम चाहते हैं देश में रेल बंद हो,
कि पटरियों पे लोग तमाम करते हैं,

जब कभी मैखाने में चिल्ला पडे,
काँपकर साकी-ओ-जाम करते हैं,

क्या हुआ अगर तूने बेवफ़ाई की,
हम भी लेके तेरा नाम करते हैं...

-रितेश :)

Sunday 11 October 2009

अर्ज है....
लाल दीवार पर लिखा था मियां गालिब ने...
लाल दीवार पर लिखा था मियां गालिब ने...
कि 'यहां लिखना मना है।'

Wednesday 30 September 2009

चन्द शेर पेशे ख़िदमत हैं मुलाहिज़ा फ़रमाएंगे?

दोस्ती इन्सान की ज़रूरत है !

दिलों पे दोस्ती की हुक़ुमत है !!

आपके प्यार की वजह से ज़िन्दा हैं !

वर्ना खुदा को भी हमारी ज़रूरत है !!



इससे पहले कि दिल में नफ़रत जागे,

आओ इक शाम मोहब्बत में बिता दी जाय

करके कुछ मोहब्बत की बातें

इस शाम की मस्ती बढ़ा दी जाय



न जाने तुम पे इतना यकीं क्यौं है?

तेरा ख्याल भी इतना हसीं क्यौं है,

सुना है प्यार का दर्द मीठा होता है,

तो आँखों से निकले ये आँसू नमकीन क्यौं है !!




सभी को सब कुछ नहीं मिलता !

नदी की हर लहर को साहिल नहीं मिलता !!

ये दिल वालों की दुनियाँ है दोस्त !

किसी से दिल नहीं मिलता !!

तो कोई दिल से नहीं मिलता !

Sunday 6 September 2009

कुछ अच्छे किस्म के सस्ते शेर

कुछ तो जीते हैं जन्नत की तमन्ना लेकर !
कुछ तमन्ना-ए-ज़िन्दगी सिखा देती है !!
हम किस तमन्ना के सहारे जीयें !
ये ज़िन्दगी हर तमन्ना टुकरा देती है !!

---------------------------------------

आपकी याद में मुरझाए फूल पर बहार वही है !
आप दूर रहते हों मगर    मेरा प्यार वही है !!
जानते हैं मिल नहीं पा रहे हैं आपसे !
मगर इन आँखों में इंतिज़ार वही है !!

------------------------------------------

मेरे ख्वाबों में आना आपका कुसूर था !
आपसे दिल लगाना हमारा कुसूर था !!
आप आए थे ज़िन्दगी में पल दो पल के लिये !
आपकों ज़िन्दगी समझ लेना हमारा कुसूर था !!

-------------------------------------------

दिन बीत जाते हैं सुहानी यादें बनकर !
बातें रह जाती हैं कहानी बनकर !!
पर प्यार तो हमेशा दिल के करीब रहेगा !
कभी मुस्कान तो कभी आँसू बनकर !!

-------------------------------------------

Saturday 22 August 2009

किस!!!

किस किस्सकी महफिल में..
किस किस्सने किस किस्सको किस-किस तरह किस किया...
एक हम है जिसने हर किस को मिस किया..
और एक आप हो जिसने हर मिस को किस किया..

Monday 17 August 2009

किस्सा यूँ है कि एक जाट सुन्दरी को एक ब्राह्मण युवक से प्यार हो जाता है. लड़का स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करता था और उस जाटनी को समझा बुझा के वापस लौटा देना चाहता था. तो उस युवक ने उस युवती को क्या सुझाव दिया, देखते हैं-

हरयाणा के ट्रक की मेरी कार से टक्कर छोड़ दे,
सुन ऐ जाट सुन्दरी ब्राह्मण का चक्कर छोड़ दे,

जिससे तुझे मुहब्बत है वह है स्वास्थ्य विभाग में,
हो सकता है वो तेरे घर में मच्छर छोड़ दे,

उसके पास न तो कार है न कोई बैंक बैलंस,
हूँ मैं पूरा ही कंगाल और फ़क्कड छोड़ दे,

मुझे अगर छुएगी तो डायबीटीज़ हो जायेगा,
इक अर्से से है बीमारी-ए-शक्कर छोड़ दे...

तो इसपर युवती का जवाब आता है-

तेरे इतने पास आ गई हूँ की अब दूर जाना कठिन है,
तुझे अगर डायबीटीज है तो मुहब्बत मेरी इंसुलिन है !!

Friday 24 July 2009

दिलों से खेलने का हुनर हम नहीं जानते

दिलों से खेलने का हुनर हम नहीं जानते
इसलिये इनकी बाज़ी हम हार गये,
मेरी ज़िन्दगी से शायद उन्हें बहुत प्यार था
इसीलिये मुझे ज़िन्दा ही मार गये,

Thursday 16 July 2009

निहायत ही सस्ता शेर

आज के बाद तुम मुझे कॉल मत करना !
न एस एम एस करना ,बात भी नहीं करना !!
मिलने की कोशिश तो भूल कर भी मत करना !
क्यौंकि डॉक्टर ने मुझे !!
मीठी चीज़ से दूर रहने को कहा है !!!!

Friday 19 June 2009

तू मुझको टिपिया सनम, मैं तुझको टिपियाउं

इन दिनों हमारे ब्‍लाग जगत में एक अजीब सी परंपरा चल रही है । ये परंपरा है महान बनाने की परंपरा । अ की टिप्‍पणी ब को मिलती है कि आप महान हैं तो जवाब में ब की भी नैतिक जिम्‍मेदारी होती है कि वो भी अ को ऐसी ही टिप्‍पणी दे । सब एक दूसरे को महान बनाने में जुटे हैं । आइये इसी पर एक कुंडली नुमा रचना देखें ।

wbCARTOON_gallery__470x330 copy 

तू मुझको टिपिया सनम, मैं तुझको टिपियाउं

तू महान बन जायेगा, और मैं भी हो जाउं

'और मैं भी हो जाउं', मेरे बनवारी सैंया

देकर टिप्‍पणियों  का बादल, कर दे छैंया

कह 'धौंधू कवि', ये है टिप्‍पणियों का जादू

तू कहता मैं आलिम हूं और मैं कहता तू

सस्ती शायरी के फ़ायदे






ऐ दोस्त तू भी कर सस्ती शायरी
मेरी तरह तेरा भी नाम हो जाएगा
लोग फेका करेंगे अंडे-टमाटर
शाम की सब्जी का इंतजाम हो जाएगा.

Thursday 18 June 2009

ब्‍लागिंग ब्‍लागिंग खेलिये सुबह दोपहर शाम

हमारे एक मित्र को डाक्‍टर के पास ले जाना पड़ा दरअसल में उनको मानसिक कब्‍ज़ हो गया था । शारीरिक कब्‍ज़ तो आप जानते ही हैं । मानिसक कब्‍ज़ में दिमाग में विचार फंस जाते हैं और भड़ास की तरह बाहर नहीं निकलते । डाक्‍टर ने उनको जो पर्चा दिया वो प्रस्‍तुत है ।

ब्‍लागिंग ब्‍लागिंग खेलिये सुबह दोपहर शाम

और नहीं गर आपको दूजा कोई काम

दूजा कोई काम, धरम पत्‍नी ना पूछे

चले आओ कम्‍प्‍यूटर पर तुम आंखें मींचे

कह 'धौंधू कवि' जहां न कोई लेता रेगिंग

ऐसा इक कालेज हमारा है ये ब्‍लागिंग 

Wednesday 17 June 2009

घर के बुद्धू लौट के घर को आजा

बहुत दिनों से इस गली में आना ही नहीं हुआ । आज बहुत दिनों बाद आया हूं और एक कुंडलिनी टाइप की रचना पेल रहा हूं । कुडलिनी की विशेषता ये होती है कि जिस शब्‍द से शुरू होती है उसी पर समाप्‍त होती है ।

माही जी की ना गली टी ट्वन्‍टी में दाल

फिर भी हैं बेशर्म ये गेंडे सी है खाल

गेंडे सी है खाल, भाये पैसे की खन खन

किरकिट खेले बिन भी मिलते हैं विज्ञापन

कह 'धोंधू' कविराय, हो चुकी खूब उगाही

घर के बुद्धू लौट के घर को आजा माही

Monday 15 June 2009

आशिक का जनाज़ा उर्फ़ महबूबा की राहत






द जनाज़ा ऑफ़ महबूब निकला फ्रॉम
द गली ऑफ़ महबूबा विथ लोट्स ऑफ़ जोर
शोर सुनकर महबूबा झांकी फ्रॉम द डोर
एंड बोली- 'आखिर मर ही गया हरामखोर'.

Saturday 13 June 2009

मोहब्बत जुर्म नहीं अगर की जाए उसूल से

_________________________
_____________________________
_______________________________
_______________________________________
_________________________________________
_____________________________________________
_______________________________________________________
_____________________________________________________________



मोहब्बत जुर्म नहीं अगर की जाए उसूल से
ख़ुदा को भी तो मोहब्बत थी अपने रसूल से
लेकिन अबकी बार ईद पर हमारे सितारे हमारी हड्डियां तुड़वा गए
हम चाँद के नजारे में खोए थे और चाँद के अब्बू वहीं पर आ गए.

(कहीं से उड़ाया है, जाओ नहीं बताते)

Tuesday 2 June 2009

"लालू" के सपोर्ट जैसा कुछ समझता है

कभी कूड़ा कभी करकट कभी वो कुछ समझता है
सिवा आशिक़ मेरा हमदम मुझे सबकुछ समझता है
मुझे इस तरह करता ट्रीट है हर तीसरे दिन वो
कि गोया "लालू" के सपोर्ट जैसा कुछ समझता है

Tuesday 26 May 2009

है बम के साथ साथ मुहब्बत भी एटमी !!

गोरे मुअशियात* में आगे निकल गये,
हम भी कागज़ात में आगे निकल गये,

दूल्हा बना गई हमें शादी रक़ीब की,
हम इस क़दर बारात में आगे निकल गये, 

है बम के साथ साथ मुहब्बत भी एटमी, 
हम दिल के तज़ुर्बात में आगे निकल गये,

नाके में कुछ अटक से गये हैं गरीब लोग,
डाकू तो वारदात में आगे निकल गये....


मुअशियात*= Economics

Friday 15 May 2009

बाज़ार मंदा है, पर ज़िंदा है अभी.. पेश हैं ये चार शे'र-

कुछ तमंचे शेष चाकू हो गये,
यार मेरे सब हलाकू हो गये,

ये इलेक्शन में जो हारे हर दफ़ा,
खीझकर चंबल के डाकू हो गये,

नग्न चित्रों का किताबों में था ठौर
दुनिया समझती थी पढाकू हो गये,

देख लो बापू ये बंदर आपके,
आज-कल बेहद लड़ाकू हो गये...

Tuesday 12 May 2009

'नन्हें' कसाई...

जिसमें शामिल साले साली, सास के आने की बात,
उससे बढकर और क्या हो दिल के घबराने की बात,

सस्ते!हम फ़ाकामस्तों को नादीदः मत समझ,
भूख में होठों पे आ ही जाती है खाने की बात,

कूचा-ओ-जानाँ में जबसे सिर फ़ुटव्वल हो गई,
अहतियातन अब नहीं करते वहाँ जाने की बात,

बन गया अपना रक़ीब 'नन्हें' कसाई उफ़! नसीब,
पंगा लेना उससे है बेमौत मर जाने की बात,

उड़ गई चेहरे की रंगत साँस भी रुकने लगी,
छेड़ दी बेगम ने फिर शापिँग पे ले जाने की बात...

Saturday 9 May 2009

क़लम & कलम...

यूँ भी नौजवानों से मायूस है अहल-ए-क़लम,

जबकि मेरा मशवरा एक नौजवाँ को भा गया,

मैनें कहा हज़रत क़लम पर भी तवज्जो दीजिए,

अगले ही हफ़्ते नौजवाँ कलमें बढा कर आ गया !!

Tuesday 5 May 2009

मैं मर भी न पाऊँगा अब ज़हर खाके...

मैं गाता हूँ जब मूड अपना बना के,
गधे रेंकते हैं मेरे घर में आ के,

मेरी नौकरी जब से छूटी है तब से,
निकलते हैं सब यार बटुआ छुपा के, 

हुई बंद बनिये की भी अब उधारी,
मैं मर भी न पाऊँगा अब ज़हर खाके,

मैं कड़का सही तुम मेरे घर तो आओ,
खिलाऊँगा तुमको मैं मुर्गा चुरा के,

मुझे क्या खबर थी कि जूते पड़ेंगे, 
मुझे ले गये अपने घर वो पटा के, 

मुझे तेरे पापा से शिकवा नहीं है, 
कि पीटा उन्होंने तो खाना खिला के, 

बचा बज़्म में कोई सामीं न 'सस्ते',
मैं फ़ारिग हुआ जब गज़ल अपनी सुनाके....

Sunday 3 May 2009

आम के आम

गर्मी हुई आँधी चली पेड़ों से गिरे आम ।
आइए जी चटनी खायें सुबह और शाम।
(कृपया इसको पूरा और ग़ज़ल का रूप देने में मदद करें । अच्छा इनाम भी पायें!)

Monday 27 April 2009

उसे उर्दू जो आती तो मुझे कच्चा चबा जाता....

ग़रीबी ने किया कड़का, नहीं तो चाँद पर जाता,
तुम्हारी माँग भरने को सितारे तोड़कर लाता,

बहा डाले तुम्हारी याद में आँसू कई गैलन,
अगर तुम फ़ोन न करतीं यहाँ सैलाब आ जाता,

तुम्हारे नाम की चिट्ठी तुम्हारे बाप ने खोली, 
उसे उर्दू जो आती तो मुझे कच्चा चबा जाता,

तुम्हारी बेवफाई से बना हूँ टाप का शायर,
तुम्हारे इश्क में फँसता तो सीधे आगरा जाता,

ये गहरे शे’र तो दो वक़्त की रोटी नहीं देते, 
अगर न हास्य रस लिखता तो हरदम घास ही खाता, 

हमारे चुटकुले सुनकर वहाँ मज़दूर रोते थे,
कि जिसका पेट खाली हो कभी भी हँस नहीं पाता,

मुहब्बत के सफर में मैं हमेशा ही रहा वेटिंग,
किसी का साथ मिलता तो टिकट कन्फर्म हो जाता,

कि उसके प्यार का लफड़ा वहाँ पकड़ा गया वर्ना,
नहीं तो यार ये क्लिंटन हज़ारों मोनिका लाता....

- Hullad Moradabadi

Sunday 26 April 2009

मुंशी मुनक़्क़ा साहब का अगला कता

आज मुंशी मुनक़्क़ा साहब
पिछली ख़ता को माफ़ फ़रमाते हुए
अगला कता फ़रमाते हैं-
__________________
__________________
______________
____________
_____________
_______________
______________

मैं क्यों बनवाऊँ मोची से
ख़रीदूं क्यों मैं बाटा से
जुमा के दिन तो हर मसजिद में
हर कीमत का मिलता है.

Friday 24 April 2009

सस्ते पे सस्ता

***
हर सस्ते शेर में दारू नहीं होता।
जैसे कि हर बैल मारू नहीं होता।

पेश है मुंशी मुनक़्क़ा साहब का एक कता

एक मजाहिया फिल्म अभिनेता हुए हैं मुंशी मुनक़्क़ा.
मुग़ल-ए-आज़म और पाकीजा जैसी फिल्मों में उन्होंने काम किया था.
मुनक़्क़ा साहब सिर्फ अभिनेता नहीं थे बल्कि मजाहिया शायरी भी किया करते थे.
पेश-ए-खिदमत है उनका कता-

कभी इज्ज़त का मिलता है
कभी ज़िल्लत का मिलता है
मगर मजबूत और बढ़िया
बड़ी बरकत का मिलता है.

Wednesday 22 April 2009

पव्वा संबन्धी शेर


ज़माने से न दब ग़ालिब तू उसके लिए हो जा हऊवा

खीसे को कर ज़रा ढीला, हलक से उतर ले पव्वा !!

Tuesday 14 April 2009

बाइक सम्बन्धी शेर






मुद्द- आ है कमबखत ये अपनी-अपनी लाइकिंग का



बुरा है पै क्या कीजे इस शौक़ ऐ अज़ीम बाइकिंग का

Sunday 12 April 2009

ऐसे वैसे कैसे



कैसे कैसे ऐसे वैसे हो गए
ऐसे वैसे कैसे कैसे हो गए

एक बार फ़िर


मेरे शुरुआती शेर रोमन स्क्रिप्ट में हैं चूंकि तब हिन्दी टाइप के जुगाड़ से खाकसार वाकिफ़ न था (अभी भी 'खाक ' के नीचे नुक्ता कैसे बिठाऊँ ये राज़ है मेरे लिए )। बहरहाल , उन तमाम शेर-चीतों , गीदड़ -बघीरों को देवनागरी में लाना चाहता हूँ ताकि देवता भी इनका मज़ा ले सकें । एक तस्वीर देखें --


याद उन शामों की अब भी बसी है मेरी नसों में


वो ले के पव्वा करना सफर रोडवेज़ की बसों में

Friday 10 April 2009

बुरी संगत का शेर




मली से खट्टा नीम्बू , नीम से करेला कड़वा



और जो न पीवे न पीन दे ऐसा यार भड़वा

'सेविंग द' फिग लीफ़' शायरी






नक़्श हुआ कीजे फरियादी किसी की शोखिए तहरीर का



हर जतन से रखियो सलामत पत्ता मगर अंजीर का





Thursday 9 April 2009

स‌स्ता शेर के लिएइंतखाब के नवाब

देख लीजिये फिर ये जनाब आये हैं
स‌ाथ अपने पांच स‌ाला इंकलाब लाये हैं
रोटी की शिकायत क्या खाक करते हैं
ये तो फिरंगी जूस का स‌ैलाब लाये हैं
आपको फुर्सत नहीं ढाई आखर पढ़ने की
ये आलमी भाईचारे का किताब लाये हैं
जुल्म-सितम की अब कभी बात न होगी
ये अमन-ओ-चैन वाला जुर्राब लाये हैं
किस्मत आप फूटी है, इन्हें क्यों कोसना
ये बूढ़ों को जवान करने का हिस‌ाब लाये हैं
अब कहने की ज़रूरत नहीं कि गरीब हैं
हमस‌ाथ अपने ये दौलत बेहिसाब लाये हैं
चंद दिनों की बात है, फिर आप ही कहेंगे
इंतखाब के जरिये नया नवाब लाये हैं

नदीम अख्तर
द पब्लिक एजेंडा

Wednesday 8 April 2009

आ जाये मुसीबत....

आ जाये मुसीबत तो हटाये नहीं हटती,
उम्र और महँगाई घटाये नहीं घटती,
इश्क़ को बैंक बैलेंस ज़रूरी है दोस्त,
कँगलों से लड़की पटाये नहीं पटती...

ककहरे का कहर







इस दर पे सीखा है ज़ालिम, मैंने बिलोगिंग का ककहरा !

मना लेन दे ऐ खबीस यहीं मुज्को ,दीवाली ईद, दशहरा !!








चित्र : मेमने पर लाड लुटाते मयखान्वी
( सौजन्य :बाबा बोर्ची स्मृति प्रतिष्ठान )