Sunday 12 April 2009

एक बार फ़िर


मेरे शुरुआती शेर रोमन स्क्रिप्ट में हैं चूंकि तब हिन्दी टाइप के जुगाड़ से खाकसार वाकिफ़ न था (अभी भी 'खाक ' के नीचे नुक्ता कैसे बिठाऊँ ये राज़ है मेरे लिए )। बहरहाल , उन तमाम शेर-चीतों , गीदड़ -बघीरों को देवनागरी में लाना चाहता हूँ ताकि देवता भी इनका मज़ा ले सकें । एक तस्वीर देखें --


याद उन शामों की अब भी बसी है मेरी नसों में


वो ले के पव्वा करना सफर रोडवेज़ की बसों में

2 comments:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

...और जो हम बगल की सीट पर बैठे आपको देखा किये.

मुनीश ( munish ) said...

arey yar hum pee na rahe the bus mein!