
मेरे शुरुआती शेर रोमन स्क्रिप्ट में हैं चूंकि तब हिन्दी टाइप के जुगाड़ से खाकसार वाकिफ़ न था (अभी भी 'खाक ' के नीचे नुक्ता कैसे बिठाऊँ ये राज़ है मेरे लिए )। बहरहाल , उन तमाम शेर-चीतों , गीदड़ -बघीरों को देवनागरी में लाना चाहता हूँ ताकि देवता भी इनका मज़ा ले सकें । एक तस्वीर देखें --
याद उन शामों की अब भी बसी है मेरी नसों में
वो ले के पव्वा करना सफर रोडवेज़ की बसों में
2 comments:
...और जो हम बगल की सीट पर बैठे आपको देखा किये.
arey yar hum pee na rahe the bus mein!
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