देख लीजिये फिर ये जनाब आये हैं
साथ अपने पांच साला इंकलाब लाये हैं
रोटी की शिकायत क्या खाक करते हैं
ये तो फिरंगी जूस का सैलाब लाये हैं
आपको फुर्सत नहीं ढाई आखर पढ़ने की
ये आलमी भाईचारे का किताब लाये हैं
जुल्म-सितम की अब कभी बात न होगी
ये अमन-ओ-चैन वाला जुर्राब लाये हैं
किस्मत आप फूटी है, इन्हें क्यों कोसना
ये बूढ़ों को जवान करने का हिसाब लाये हैं
अब कहने की ज़रूरत नहीं कि गरीब हैं
हमसाथ अपने ये दौलत बेहिसाब लाये हैं
चंद दिनों की बात है, फिर आप ही कहेंगे
इंतखाब के जरिये नया नवाब लाये हैं
नदीम अख्तर
द पब्लिक एजेंडा
Thursday, 9 April 2009
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7 comments:
budhon ko javaan karne ka KHIJAAB laye hain.
इसी तर्ज पर एक मेरी भी तुकबंदी पेश है-
लगातार वतन की हालत क्यों बिगड़ी?
गफलत पैदा करने कोरा जबाव लाये हैं।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
खुद अपने लिये तो इतालवी लैदर के जूते
और जनता के लिये फ़टी इक जुराब लाये हैं
anoop ji, shyamal ji 100./. sahee!
बढिया है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
दाद दे रहा हूँ. खुजाने न लगियेगा.
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