Thursday 9 April 2009

स‌स्ता शेर के लिएइंतखाब के नवाब

देख लीजिये फिर ये जनाब आये हैं
स‌ाथ अपने पांच स‌ाला इंकलाब लाये हैं
रोटी की शिकायत क्या खाक करते हैं
ये तो फिरंगी जूस का स‌ैलाब लाये हैं
आपको फुर्सत नहीं ढाई आखर पढ़ने की
ये आलमी भाईचारे का किताब लाये हैं
जुल्म-सितम की अब कभी बात न होगी
ये अमन-ओ-चैन वाला जुर्राब लाये हैं
किस्मत आप फूटी है, इन्हें क्यों कोसना
ये बूढ़ों को जवान करने का हिस‌ाब लाये हैं
अब कहने की ज़रूरत नहीं कि गरीब हैं
हमस‌ाथ अपने ये दौलत बेहिसाब लाये हैं
चंद दिनों की बात है, फिर आप ही कहेंगे
इंतखाब के जरिये नया नवाब लाये हैं

नदीम अख्तर
द पब्लिक एजेंडा

7 comments:

मुनीश ( munish ) said...

budhon ko javaan karne ka KHIJAAB laye hain.

श्यामल सुमन said...

इसी तर्ज पर एक मेरी भी तुकबंदी पेश है-

लगातार वतन की हालत क्यों बिगड़ी?
गफलत पैदा करने कोरा जबाव लाये हैं।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

अनूप भार्गव said...

खुद अपने लिये तो इतालवी लैदर के जूते
और जनता के लिये फ़टी इक जुराब लाये हैं

मुनीश ( munish ) said...
This comment has been removed by the author.
मुनीश ( munish ) said...

anoop ji, shyamal ji 100./. sahee!

Satish Chandra Satyarthi said...

बढिया है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

कौतुक रमण said...

दाद दे रहा हूँ. खुजाने न लगियेगा.