पुरानी ग़ज़लों का चरबा करना और उनमें से अच्छी बाते निकाल लाना ये तो प्रदीप जी के ही बस का है तभी तो उन्होंने चचा गालिब को भी नहीं बक्शा है
डाक अब वक्त पर नहीं आती
दोस्तों की खबर नहीं आती
पहले आती थी चुटकुलों पे हंसी
अब किसी बात पर नहीं आती
हमने चाहा कि मौत आ जाए
मौत बोली कि 'मर' , नहीं आती
8 comments:
हंसी आएगी जिस दिन डाक वक्त पर आए
दोस्त अच्छा है जो ऊंचा दरख्त चढ़ जाए
मौत का इन्तजार क्यों करें, बतायें ज़रा
ज़िंदगी गर कहे; 'कमबख्त अभी मर जाए'
और जीना अगर नहीं होता
जूते चप्पल का डर नहीं होता
टिप्पणी हम भी देते सच्ची यदि
राह में आपका घर नहीं होता
अच्छा है..हंसी आ गई..
:)
वाह वाह !! आनंद में हूँ.
mazedaar blog hai, achchha laga paDhakar..
डाक वक्त पर आ भी जाए तो क्या?
दोस्तों की ख़बर मिल जाए तो क्या?
हंस लिए हम तुमको हँसी आए न आए
लोग ख़ुद ही ख़ुद को भरमाएं तो क्या?
Kya hua, Dak jo na vakt par na aaye,
mobile se call mila lenge.
Kya hua, jo chutkulon se hansi nahi aaye,
Lafter show wala channel hi laga lenge.
Maut se maut maangne ki kya hai jaroot,
Bazar se nakli wala desi ghee hi kha lenge.
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