Monday 10 March 2008

चचा गालिब से प्रदीप चौबे जी की क्षमा याचना

पुरानी ग़ज़लों का चरबा करना और उनमें से अच्‍छी बाते निकाल लाना ये तो प्रदीप जी के ही बस का है तभी तो उन्‍होंने चचा गालिब को भी नहीं बक्‍शा है

डाक अब वक्‍त पर नहीं आती

दोस्‍तों की खबर नहीं आती

पहले आती थी चुटकुलों पे हंसी

अब किसी बात पर नहीं आती

हमने चाहा कि मौत आ जाए

मौत बोली कि 'मर' , नहीं आती

8 comments:

Shiv Kumar Mishra said...

हंसी आएगी जिस दिन डाक वक्त पर आए
दोस्त अच्छा है जो ऊंचा दरख्त चढ़ जाए
मौत का इन्तजार क्यों करें, बतायें ज़रा
ज़िंदगी गर कहे; 'कमबख्त अभी मर जाए'

Ghost Buster said...

और जीना अगर नहीं होता
जूते चप्पल का डर नहीं होता
टिप्पणी हम भी देते सच्ची यदि
राह में आपका घर नहीं होता

Kavi Kulwant said...

अच्छा है..हंसी आ गई..

परमजीत सिहँ बाली said...

:)

अमिताभ मीत said...

वाह वाह !! आनंद में हूँ.

Anonymous said...

mazedaar blog hai, achchha laga paDhakar..

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

डाक वक्त पर आ भी जाए तो क्या?

दोस्तों की ख़बर मिल जाए तो क्या?

हंस लिए हम तुमको हँसी आए न आए

लोग ख़ुद ही ख़ुद को भरमाएं तो क्या?

Ritesh Ranjan Kumar said...

Kya hua, Dak jo na vakt par na aaye,
mobile se call mila lenge.
Kya hua, jo chutkulon se hansi nahi aaye,
Lafter show wala channel hi laga lenge.
Maut se maut maangne ki kya hai jaroot,
Bazar se nakli wala desi ghee hi kha lenge.