Thursday, 13 March 2008

"शाद" अज़ीमबादी से क्षमायाचना सहित




तड़पना है तो जाओ जा के तड़पो "शाद" खि़लवत में .....

"शाद" साहब नाशाद न होइयेगा, अब आगे माफ़ करियेगा

तड़पना है तो जाओ दारु मारो जा के ठेके में
वहाँ छक के पियो ओर फ़ोन पर कह दो "तड़पते हैं"

3 comments:

मुनीश ( munish ) said...

vaah !

Anonymous said...

महबूब की आंखों में तड़प देखी जो हमने
ठेके कि और भग चले हम उसको मिटाने

जेब में दस रुपिये हैं इक अद्धे के लिये
यारों को ढुढ़ंते हैं हम मुर्गे के जुटाने

अमिताभ मीत said...

वाह गुरुदेव ! वाह !! मुर्गे़ की बात तो मैं भूल ही गया था. दरअस्ल तड़पने-तड़पाने के मूड में था न !!!