Monday 24 March 2008

आइये कुछ रायता फैलाया जाए


मजाज़ लखनवी

होली में विभिन्न प्रकार के साधनों की सहायता से टुन्न होने का सत्कर्म करने वालों को रायते का महात्म्य भली भांति मालूम है।


'शहर की रात और मैं नाशाद-ओ-नाकारा फिरूँ' लिखने वाले मरहूम शायर मजाज़ साहब पैरोडियां बनाने में एक्सपर्ट की हैसियत रखते थे। एक दावत में उन्होंने रायते पर कई शेर कहे थे। अलग अलग शायरों की स्टाइल में कहे गए इन शेरों में दो मुझे अभी तलक याद हैं। फैज़ साहब की ज़मीन पर शेर देखें:

"तेरी अन्गुश्त-ऐ-हिनाई में अगर रायता आए
अनगिनत जायके याल्गार करें मिस्ल-ऐ-रकीब"

(यानी अगर तेरी मेंहदी लगी उँगलियों पर रायता लग जाए तो तमाम स्वाद शत्रुओं की तरह आपस में आक्रमण करने लगें।)

ख़ुद अपने एक शेर को मजाज़ साहब ने इस तरह रायतामय बनाया:

"बिन्नत-ऐ-शब-ऐ-देग-ऐ-जुनून रायता की जाई हो
मेरी मगमूम जवानी की तवानाई हो"

फिराक साब की ज़मीन पर फकत एक मिसरा है। सस्ते भाई लोग उसे पूरा कर सकते हैं:

"टपक रहा है धुंधलकों से रायता कम कम ..."

इन दिनों इस जबरजस्त बिलाग पर लगातार फैल रहे रायते को और भी अगली ज़मीनों तक फैलाये जाने की शुभेच्छाओं के साथ सारे मिल कर बोलें: बोर्ची की जय!!!

4 comments:

इरफ़ान said...

आपके रायते में नमक सही उतरा. जय बोर्ची.

मुनीश ( munish ) said...

.....ke baha diya parnala -e- aab-e-zamzam!!
mast sher !

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

टपक रहा है धुंधलकों से रायता कम-कम,
खड़े हैं बाल्टी लेकर, भरेगी कब हमदम?

-विजय रायतनवी.

Unknown said...

पांडे जी को परनाम - जैसी आज्ञा दो नमूने पेश हैं
"टपक रहा है धुंधलकों से रायता कम कम ..."
..तो काफ़ी ही पिला दे नामुराद गजरदम
या
"टपक रहा है धुंधलकों से रायता कम कम ..."
तो भाग चलें गरम पानी, हल्द्वानी से आप हम