Friday, 14 March 2008

कोई से कोई भी क्ष‍मा याचना नहीं क्‍योंकि पता ही नहीं ये किसकी है

अब अपन होली के हुरियारे होने लगे हैं होली के दस दिनन पेले से ही हमको होरी की मस्‍ती चड़बे लग जाए है सो हम जाने किसकी ये लाइनें पेल रहे हैं

थी ग़ज़ब की मुझमें फुर्ती ग़मे आशिक़ी के पहले

मैं घसीटता था ठेला तेरी दोस्‍ती के पहले

तेरी बाल्‍टी पकड़ने मैं खड़ा रहा था वरना

मेरा डोल भर चुका था तेरी बाल्‍टी के पहले

1 comment:

Ghost Buster said...

गमे आशिकी के मारे हैं हजार तेरे जैसे,
किए हमने ये नज़ारे कई बार तेरे जैसे,
जरा दो घड़ी ठहर जा आते हैं मेरे भइया,
पहले भी हैं सुधारे बीमार तेरे जैसे.