सागर खय्यामी साहब कहते हैं कि 'उनके जमाने' का इश्क कुछ और था. आग का दरिया था जिसमें से डूबकर जाना पड़ता था. आज का इश्क बहुत आसान है. कहते हैं;
अब इश्क नहीं मुश्किल, बस इतना समझ लीजिये
कब आग का दरिया है, कब डूब कर जाना है
मायूस न हों आशिक, मिल जायेगी माशूका
बस इतनी सी जहमत है, मोबाइल उठाना है
Tuesday 25 March 2008
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7 comments:
सही है सर. बहुत बहुत शुक्रिया. आप बड़े काम के आदमी लगते हैं. इस विषय पर और प्रकाश डालें.
मायूस न हों आशिक, मिल जायेगी माशूका
बस इतनी सी जहमत है, मोबाइल उठाना है
एक पिज्जे की जहमत है ,माल मे जाना है
ऎसी जोरदार समझाईश के लिए शुक्रिया.
WOW! MAINE KAHA WOW!!
अजी अब भी कहाँ आसान है.
मोबाइल उठाना है, नंबर भी लगाना है, एंट्री भी मिटाना है,
और गर कहीं चूके, तो फिर बीवी से खाना है.
ये भी तो बताएं बिल किसको चुकाना है [ :-)]
इन शेरों के हैं अंदाजे बयान और.......
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