Tuesday, 25 March 2008

अब इश्क नहीं मुश्किल, बस इतना समझ लीजिये

सागर खय्यामी साहब कहते हैं कि 'उनके जमाने' का इश्क कुछ और था. आग का दरिया था जिसमें से डूबकर जाना पड़ता था. आज का इश्क बहुत आसान है. कहते हैं;

अब इश्क नहीं मुश्किल, बस इतना समझ लीजिये
कब आग का दरिया है, कब डूब कर जाना है
मायूस न हों आशिक, मिल जायेगी माशूका
बस इतनी सी जहमत है, मोबाइल उठाना है

7 comments:

अमिताभ मीत said...

सही है सर. बहुत बहुत शुक्रिया. आप बड़े काम के आदमी लगते हैं. इस विषय पर और प्रकाश डालें.

Arun Arora said...

मायूस न हों आशिक, मिल जायेगी माशूका
बस इतनी सी जहमत है, मोबाइल उठाना है
एक पिज्जे की जहमत है ,माल मे जाना है

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

ऎसी जोरदार समझाईश के लिए शुक्रिया.

मुनीश ( munish ) said...

WOW! MAINE KAHA WOW!!

Ghost Buster said...

अजी अब भी कहाँ आसान है.
मोबाइल उठाना है, नंबर भी लगाना है, एंट्री भी मिटाना है,
और गर कहीं चूके, तो फिर बीवी से खाना है.

Unknown said...

ये भी तो बताएं बिल किसको चुकाना है [ :-)]

रश्मि प्रभा... said...

इन शेरों के हैं अंदाजे बयान और.......