Thursday, 27 March 2008

मगर फ़िर भी

दो ये शेर फिराक साहब की ओर से. उन्होंने काफी पहले एक ग़ज़ल लिखी थी. उसमें बाद में कुछ सुधार कर दिया है स्वर्ग से चलाए जा रहे अपने ब्लॉग में उन्होंने यह संशोधन लागू किया है. संशोधन सहित यह पेश है आपके लिए भी:
रम हो या विस्की सबका पव्वा है, मगर फ़िर भी
हर कोई चाहता है यहाँ पूरी बोतल फ़िर भी
हजार बार दारू का ठेकेदार इधर से गुजरा है
हजार बार खाली रहा मेरा सागर फ़िर भी

4 comments:

Shiv Kumar Mishra said...

वाह! वाह!...फिराख साहब स्वर्ग से ब्लॉग चला रहे हैं ये जानकर खुशी हुई...वैसे मेरा मानना है कि;

हर कोई क्यों न यहाँ चाहेगा पूरी बोतल
जो मजा बोतल उलटने में है, पौवे में कहाँ

Joshim said...

हे प्रभो आप हैं लगे किसकी फिराक में
"मैखाने" में है चल रहा कारोबार फिर भी
[ मुनीश भाई ठीक है कि नहीं ?]

अमिताभ मीत said...

भाई वाह ! फ़िराक़ अब भी फ़िराक़ में हैं .... वाह !

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

bilkul theek