भाई शिव कुमार मिश्र से मिली दाद पर एक दिनाई आप सब को पेशे खिदमत है:
वाह-वाह-वाह साहब
लग गया कि आप भैरो बाबा की नगरी से बिलांग करते हैं.
जहाँ लोग हाथ नहीं धर पाते वहाँ आप टांग करते हैं.
बाकी हमारा क्या, हम तो ऐसहीं हैं
वही करते हैं जो सब उरांग उटांग करते हैं.
Friday, 14 March 2008
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3 comments:
भाई इष्ट देव जी,
भैरो बाबा तो हर नगरी में हैं
वही सागर में हैं, गगरी में हैं
जमीं पर टिके हुए पाँव हैं 'सर'... मैं टांग कैसे कर सकता हूँ? ...:-)
urang -utan? Discovery channel pe is naam ke vaanar par ek docoumentary dekhi thi saab!
svaagat hai hey Blog Bandhu!
हे इष्ट देव. प्रणाम - आप को और आप की टांग को.
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