Wednesday 12 March 2008

तुम भी क्या याद करोगे - चलो अब सर पीटो

इरफ़ान भाई शुक्रिया.

इतनी सस्ती जगह ले आए सस्ते में
वरना हम - पड़े थे कही रस्ते में .......
अब मियाँ बुला ही लिया है तो झेलो भी

तुम भी क्या याद करोगे - चलो अब सर पीटो.

याद नहीं आता किसका लिखा है मगर इस इंटरनेट के ज़माने में भी ये झेलेंगे ?

"निराली शान के या रब ! हमारे डाकखा़ने हैं
जो तार आया सो लेट आया, जो ख़त आया ग़लत आया
मेरे इक दोस्त ने लिखा था कि आता हूँ करांची में
वो आ कर चल दिए ... और छः महीने बाद ख़त आया"

4 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!

Anonymous said...

वाह उस्ताद वाह

मुनीश ( munish ) said...

आहा जे हो ब्लॉग -नंदन ! मधुर शेर है!

इरफ़ान said...

शेर पढकर हम रहे हैं पीट अपने सर
क्यों बुलाया एक शायर मीट अपने घर?