झण्डा ऊंचा रहे हमारा।
आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर आईए कसम खा लें कि देश में आतंकवाद को पनपने नहीं देंगे और आतंकी को घुसने नहीं देंगे।
जय हिन्द!
Monday 26 January 2009
Friday 23 January 2009
...किसका था?
गुलाम अली की गाई एक बड़ी पुरानी ग़ज़ल है. आपने सुनी ही होगी. घबराइए मत, मैं वह आपको सुनवाने नही जा रहा हूँ. मैंने तो बस उसका एक कलजुगी संस्करण तैयार किया है. मैं यहाँ वही ठेल रहा हूँ. अगर आप झेल सकते हैं तो झेलें. आगे तो समझदार हैं ही ख़ुद ही समझजाएँगे की मैं किस ग़ज़ल की बात कर रहा था:
- तुम्हारे छत में नया ik धडाम किसका था
- न था अमीन तो आख़िर वो काम किसका था
- लिखा न बिल में वो खर्च मगर कर्ज रहा
- मुनीम पूछ रहा है मकान किसका था
- वफ़ा करेंगे निभाएँगे बात मानेंगे
- हमें तो याद नहीं ये कलाम किसका था
- गुजर गया वो जनाना कहूं तो किससे कहूं
- रयाल दिल से मेरे सुबहो-शाम जिसका था
मत जान बूझ अनजान बनो
मत जान बूझ अनजान बनो
तुम हो मेरी जीवन रेखा
न मरने का सामान बनो
मत जान बूझ अनजान बनो
मैं बनू तुम्हारी केटरीना
और तुम मेरे सलमान बनो
मत जान बूझ अनजान बनों
मैं बन जाऊं पालक-पनीर
तुम पूरी या फ़िर नॉन बनों
मत जान बूझ अनजान बनों
जहाँ मुर्दे भी रोमांस करें
तुम ऐसा कब्रिस्तान बनों
मत जान बूझ अनजान बनों
तुम हो मेरी जीवन रेखा
न मरने का सामान बनो
मत जान बूझ अनजान बनो
मैं बनू तुम्हारी केटरीना
और तुम मेरे सलमान बनो
मत जान बूझ अनजान बनों
मैं बन जाऊं पालक-पनीर
तुम पूरी या फ़िर नॉन बनों
मत जान बूझ अनजान बनों
जहाँ मुर्दे भी रोमांस करें
तुम ऐसा कब्रिस्तान बनों
मत जान बूझ अनजान बनों
Sunday 11 January 2009
बकबक
बहुत दिन से सुन रहां हूं सस्ते शेर,
आपकी बकबक, इनकी बकबक ,उनकी बकबक।
बर्दाश्त की हो गई है हद,खामोश हो जा ,या
और बक ,खूब बक , मेरी बला से करेजा बकबक।
आपकी बकबक, इनकी बकबक ,उनकी बकबक।
बर्दाश्त की हो गई है हद,खामोश हो जा ,या
और बक ,खूब बक , मेरी बला से करेजा बकबक।
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