Friday 23 January 2009

...किसका था?

गुलाम अली की गाई एक बड़ी पुरानी ग़ज़ल है. आपने सुनी ही होगी. घबराइए मत, मैं वह आपको सुनवाने नही जा रहा हूँ. मैंने तो बस उसका एक कलजुगी संस्करण तैयार किया है. मैं यहाँ वही ठेल रहा हूँ. अगर आप झेल सकते हैं तो झेलें. आगे तो समझदार हैं ही ख़ुद ही समझजाएँगे की मैं किस ग़ज़ल की बात कर रहा था:

  • तुम्हारे छत में नया ik धडाम किसका था
  • न था अमीन तो आख़िर वो काम किसका था
  • लिखा न बिल में वो खर्च मगर कर्ज रहा
  • मुनीम पूछ रहा है मकान किसका था
  • वफ़ा करेंगे निभाएँगे बात मानेंगे
  • हमें तो याद नहीं ये कलाम किसका था
  • गुजर गया वो जनाना कहूं तो किससे कहूं
  • रयाल दिल से मेरे सुबहो-शाम जिसका था

8 comments:

श्रेयार्चन said...

हर शेर धाँसू है जनाब... गुलाम अली साहब सुने तो वो भी यही कहेंगे... बधाई.

Vinay said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरण

---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें

अनूप भार्गव said...

बढिया है ...

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

HAHAHAHAHAHAHAHAHAHA.....HAAHAHAHAHASHHHHH

ऋतेश त्रिपाठी said...

mast hai guru :)

ऋतेश त्रिपाठी said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

wah wah
wah wah
wah wah

Anonymous said...

wah wah
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