गुलाम अली की गाई एक बड़ी पुरानी ग़ज़ल है. आपने सुनी ही होगी. घबराइए मत, मैं वह आपको सुनवाने नही जा रहा हूँ. मैंने तो बस उसका एक कलजुगी संस्करण तैयार किया है. मैं यहाँ वही ठेल रहा हूँ. अगर आप झेल सकते हैं तो झेलें. आगे तो समझदार हैं ही ख़ुद ही समझजाएँगे की मैं किस ग़ज़ल की बात कर रहा था:
- तुम्हारे छत में नया ik धडाम किसका था
- न था अमीन तो आख़िर वो काम किसका था
- लिखा न बिल में वो खर्च मगर कर्ज रहा
- मुनीम पूछ रहा है मकान किसका था
- वफ़ा करेंगे निभाएँगे बात मानेंगे
- हमें तो याद नहीं ये कलाम किसका था
- गुजर गया वो जनाना कहूं तो किससे कहूं
- रयाल दिल से मेरे सुबहो-शाम जिसका था
8 comments:
हर शेर धाँसू है जनाब... गुलाम अली साहब सुने तो वो भी यही कहेंगे... बधाई.
बहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरण
---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें
बढिया है ...
HAHAHAHAHAHAHAHAHAHA.....HAAHAHAHAHASHHHHH
mast hai guru :)
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