Saturday 26 December 2009

देके अमन का पैगाम करते हैं!!

सुबह करते हैं, शाम करते हैं,
देके अमन का पैगाम करते हैं,

हमें ज़रूरत ही नहीं पैखानों की,
खुली हवा में खुलेआम करते हैं,

हम चाहते हैं देश में रेल बंद हो,
कि पटरियों पे लोग तमाम करते हैं,

जब कभी मैखाने में चिल्ला पडे,
काँपकर साकी-ओ-जाम करते हैं,

क्या हुआ अगर तूने बेवफ़ाई की,
हम भी लेके तेरा नाम करते हैं...

-रितेश :)

Sunday 11 October 2009

अर्ज है....
लाल दीवार पर लिखा था मियां गालिब ने...
लाल दीवार पर लिखा था मियां गालिब ने...
कि 'यहां लिखना मना है।'

Wednesday 30 September 2009

चन्द शेर पेशे ख़िदमत हैं मुलाहिज़ा फ़रमाएंगे?

दोस्ती इन्सान की ज़रूरत है !

दिलों पे दोस्ती की हुक़ुमत है !!

आपके प्यार की वजह से ज़िन्दा हैं !

वर्ना खुदा को भी हमारी ज़रूरत है !!



इससे पहले कि दिल में नफ़रत जागे,

आओ इक शाम मोहब्बत में बिता दी जाय

करके कुछ मोहब्बत की बातें

इस शाम की मस्ती बढ़ा दी जाय



न जाने तुम पे इतना यकीं क्यौं है?

तेरा ख्याल भी इतना हसीं क्यौं है,

सुना है प्यार का दर्द मीठा होता है,

तो आँखों से निकले ये आँसू नमकीन क्यौं है !!




सभी को सब कुछ नहीं मिलता !

नदी की हर लहर को साहिल नहीं मिलता !!

ये दिल वालों की दुनियाँ है दोस्त !

किसी से दिल नहीं मिलता !!

तो कोई दिल से नहीं मिलता !

Sunday 6 September 2009

कुछ अच्छे किस्म के सस्ते शेर

कुछ तो जीते हैं जन्नत की तमन्ना लेकर !
कुछ तमन्ना-ए-ज़िन्दगी सिखा देती है !!
हम किस तमन्ना के सहारे जीयें !
ये ज़िन्दगी हर तमन्ना टुकरा देती है !!

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आपकी याद में मुरझाए फूल पर बहार वही है !
आप दूर रहते हों मगर    मेरा प्यार वही है !!
जानते हैं मिल नहीं पा रहे हैं आपसे !
मगर इन आँखों में इंतिज़ार वही है !!

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मेरे ख्वाबों में आना आपका कुसूर था !
आपसे दिल लगाना हमारा कुसूर था !!
आप आए थे ज़िन्दगी में पल दो पल के लिये !
आपकों ज़िन्दगी समझ लेना हमारा कुसूर था !!

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दिन बीत जाते हैं सुहानी यादें बनकर !
बातें रह जाती हैं कहानी बनकर !!
पर प्यार तो हमेशा दिल के करीब रहेगा !
कभी मुस्कान तो कभी आँसू बनकर !!

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Saturday 22 August 2009

किस!!!

किस किस्सकी महफिल में..
किस किस्सने किस किस्सको किस-किस तरह किस किया...
एक हम है जिसने हर किस को मिस किया..
और एक आप हो जिसने हर मिस को किस किया..

Monday 17 August 2009

किस्सा यूँ है कि एक जाट सुन्दरी को एक ब्राह्मण युवक से प्यार हो जाता है. लड़का स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करता था और उस जाटनी को समझा बुझा के वापस लौटा देना चाहता था. तो उस युवक ने उस युवती को क्या सुझाव दिया, देखते हैं-

हरयाणा के ट्रक की मेरी कार से टक्कर छोड़ दे,
सुन ऐ जाट सुन्दरी ब्राह्मण का चक्कर छोड़ दे,

जिससे तुझे मुहब्बत है वह है स्वास्थ्य विभाग में,
हो सकता है वो तेरे घर में मच्छर छोड़ दे,

उसके पास न तो कार है न कोई बैंक बैलंस,
हूँ मैं पूरा ही कंगाल और फ़क्कड छोड़ दे,

मुझे अगर छुएगी तो डायबीटीज़ हो जायेगा,
इक अर्से से है बीमारी-ए-शक्कर छोड़ दे...

तो इसपर युवती का जवाब आता है-

तेरे इतने पास आ गई हूँ की अब दूर जाना कठिन है,
तुझे अगर डायबीटीज है तो मुहब्बत मेरी इंसुलिन है !!

Friday 24 July 2009

दिलों से खेलने का हुनर हम नहीं जानते

दिलों से खेलने का हुनर हम नहीं जानते
इसलिये इनकी बाज़ी हम हार गये,
मेरी ज़िन्दगी से शायद उन्हें बहुत प्यार था
इसीलिये मुझे ज़िन्दा ही मार गये,

Thursday 16 July 2009

निहायत ही सस्ता शेर

आज के बाद तुम मुझे कॉल मत करना !
न एस एम एस करना ,बात भी नहीं करना !!
मिलने की कोशिश तो भूल कर भी मत करना !
क्यौंकि डॉक्टर ने मुझे !!
मीठी चीज़ से दूर रहने को कहा है !!!!

Friday 19 June 2009

तू मुझको टिपिया सनम, मैं तुझको टिपियाउं

इन दिनों हमारे ब्‍लाग जगत में एक अजीब सी परंपरा चल रही है । ये परंपरा है महान बनाने की परंपरा । अ की टिप्‍पणी ब को मिलती है कि आप महान हैं तो जवाब में ब की भी नैतिक जिम्‍मेदारी होती है कि वो भी अ को ऐसी ही टिप्‍पणी दे । सब एक दूसरे को महान बनाने में जुटे हैं । आइये इसी पर एक कुंडली नुमा रचना देखें ।

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तू मुझको टिपिया सनम, मैं तुझको टिपियाउं

तू महान बन जायेगा, और मैं भी हो जाउं

'और मैं भी हो जाउं', मेरे बनवारी सैंया

देकर टिप्‍पणियों  का बादल, कर दे छैंया

कह 'धौंधू कवि', ये है टिप्‍पणियों का जादू

तू कहता मैं आलिम हूं और मैं कहता तू

सस्ती शायरी के फ़ायदे






ऐ दोस्त तू भी कर सस्ती शायरी
मेरी तरह तेरा भी नाम हो जाएगा
लोग फेका करेंगे अंडे-टमाटर
शाम की सब्जी का इंतजाम हो जाएगा.

Thursday 18 June 2009

ब्‍लागिंग ब्‍लागिंग खेलिये सुबह दोपहर शाम

हमारे एक मित्र को डाक्‍टर के पास ले जाना पड़ा दरअसल में उनको मानसिक कब्‍ज़ हो गया था । शारीरिक कब्‍ज़ तो आप जानते ही हैं । मानिसक कब्‍ज़ में दिमाग में विचार फंस जाते हैं और भड़ास की तरह बाहर नहीं निकलते । डाक्‍टर ने उनको जो पर्चा दिया वो प्रस्‍तुत है ।

ब्‍लागिंग ब्‍लागिंग खेलिये सुबह दोपहर शाम

और नहीं गर आपको दूजा कोई काम

दूजा कोई काम, धरम पत्‍नी ना पूछे

चले आओ कम्‍प्‍यूटर पर तुम आंखें मींचे

कह 'धौंधू कवि' जहां न कोई लेता रेगिंग

ऐसा इक कालेज हमारा है ये ब्‍लागिंग 

Wednesday 17 June 2009

घर के बुद्धू लौट के घर को आजा

बहुत दिनों से इस गली में आना ही नहीं हुआ । आज बहुत दिनों बाद आया हूं और एक कुंडलिनी टाइप की रचना पेल रहा हूं । कुडलिनी की विशेषता ये होती है कि जिस शब्‍द से शुरू होती है उसी पर समाप्‍त होती है ।

माही जी की ना गली टी ट्वन्‍टी में दाल

फिर भी हैं बेशर्म ये गेंडे सी है खाल

गेंडे सी है खाल, भाये पैसे की खन खन

किरकिट खेले बिन भी मिलते हैं विज्ञापन

कह 'धोंधू' कविराय, हो चुकी खूब उगाही

घर के बुद्धू लौट के घर को आजा माही

Monday 15 June 2009

आशिक का जनाज़ा उर्फ़ महबूबा की राहत






द जनाज़ा ऑफ़ महबूब निकला फ्रॉम
द गली ऑफ़ महबूबा विथ लोट्स ऑफ़ जोर
शोर सुनकर महबूबा झांकी फ्रॉम द डोर
एंड बोली- 'आखिर मर ही गया हरामखोर'.

Saturday 13 June 2009

मोहब्बत जुर्म नहीं अगर की जाए उसूल से

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मोहब्बत जुर्म नहीं अगर की जाए उसूल से
ख़ुदा को भी तो मोहब्बत थी अपने रसूल से
लेकिन अबकी बार ईद पर हमारे सितारे हमारी हड्डियां तुड़वा गए
हम चाँद के नजारे में खोए थे और चाँद के अब्बू वहीं पर आ गए.

(कहीं से उड़ाया है, जाओ नहीं बताते)

Tuesday 2 June 2009

"लालू" के सपोर्ट जैसा कुछ समझता है

कभी कूड़ा कभी करकट कभी वो कुछ समझता है
सिवा आशिक़ मेरा हमदम मुझे सबकुछ समझता है
मुझे इस तरह करता ट्रीट है हर तीसरे दिन वो
कि गोया "लालू" के सपोर्ट जैसा कुछ समझता है

Tuesday 26 May 2009

है बम के साथ साथ मुहब्बत भी एटमी !!

गोरे मुअशियात* में आगे निकल गये,
हम भी कागज़ात में आगे निकल गये,

दूल्हा बना गई हमें शादी रक़ीब की,
हम इस क़दर बारात में आगे निकल गये, 

है बम के साथ साथ मुहब्बत भी एटमी, 
हम दिल के तज़ुर्बात में आगे निकल गये,

नाके में कुछ अटक से गये हैं गरीब लोग,
डाकू तो वारदात में आगे निकल गये....


मुअशियात*= Economics

Friday 15 May 2009

बाज़ार मंदा है, पर ज़िंदा है अभी.. पेश हैं ये चार शे'र-

कुछ तमंचे शेष चाकू हो गये,
यार मेरे सब हलाकू हो गये,

ये इलेक्शन में जो हारे हर दफ़ा,
खीझकर चंबल के डाकू हो गये,

नग्न चित्रों का किताबों में था ठौर
दुनिया समझती थी पढाकू हो गये,

देख लो बापू ये बंदर आपके,
आज-कल बेहद लड़ाकू हो गये...

Tuesday 12 May 2009

'नन्हें' कसाई...

जिसमें शामिल साले साली, सास के आने की बात,
उससे बढकर और क्या हो दिल के घबराने की बात,

सस्ते!हम फ़ाकामस्तों को नादीदः मत समझ,
भूख में होठों पे आ ही जाती है खाने की बात,

कूचा-ओ-जानाँ में जबसे सिर फ़ुटव्वल हो गई,
अहतियातन अब नहीं करते वहाँ जाने की बात,

बन गया अपना रक़ीब 'नन्हें' कसाई उफ़! नसीब,
पंगा लेना उससे है बेमौत मर जाने की बात,

उड़ गई चेहरे की रंगत साँस भी रुकने लगी,
छेड़ दी बेगम ने फिर शापिँग पे ले जाने की बात...

Saturday 9 May 2009

क़लम & कलम...

यूँ भी नौजवानों से मायूस है अहल-ए-क़लम,

जबकि मेरा मशवरा एक नौजवाँ को भा गया,

मैनें कहा हज़रत क़लम पर भी तवज्जो दीजिए,

अगले ही हफ़्ते नौजवाँ कलमें बढा कर आ गया !!

Tuesday 5 May 2009

मैं मर भी न पाऊँगा अब ज़हर खाके...

मैं गाता हूँ जब मूड अपना बना के,
गधे रेंकते हैं मेरे घर में आ के,

मेरी नौकरी जब से छूटी है तब से,
निकलते हैं सब यार बटुआ छुपा के, 

हुई बंद बनिये की भी अब उधारी,
मैं मर भी न पाऊँगा अब ज़हर खाके,

मैं कड़का सही तुम मेरे घर तो आओ,
खिलाऊँगा तुमको मैं मुर्गा चुरा के,

मुझे क्या खबर थी कि जूते पड़ेंगे, 
मुझे ले गये अपने घर वो पटा के, 

मुझे तेरे पापा से शिकवा नहीं है, 
कि पीटा उन्होंने तो खाना खिला के, 

बचा बज़्म में कोई सामीं न 'सस्ते',
मैं फ़ारिग हुआ जब गज़ल अपनी सुनाके....

Sunday 3 May 2009

आम के आम

गर्मी हुई आँधी चली पेड़ों से गिरे आम ।
आइए जी चटनी खायें सुबह और शाम।
(कृपया इसको पूरा और ग़ज़ल का रूप देने में मदद करें । अच्छा इनाम भी पायें!)

Monday 27 April 2009

उसे उर्दू जो आती तो मुझे कच्चा चबा जाता....

ग़रीबी ने किया कड़का, नहीं तो चाँद पर जाता,
तुम्हारी माँग भरने को सितारे तोड़कर लाता,

बहा डाले तुम्हारी याद में आँसू कई गैलन,
अगर तुम फ़ोन न करतीं यहाँ सैलाब आ जाता,

तुम्हारे नाम की चिट्ठी तुम्हारे बाप ने खोली, 
उसे उर्दू जो आती तो मुझे कच्चा चबा जाता,

तुम्हारी बेवफाई से बना हूँ टाप का शायर,
तुम्हारे इश्क में फँसता तो सीधे आगरा जाता,

ये गहरे शे’र तो दो वक़्त की रोटी नहीं देते, 
अगर न हास्य रस लिखता तो हरदम घास ही खाता, 

हमारे चुटकुले सुनकर वहाँ मज़दूर रोते थे,
कि जिसका पेट खाली हो कभी भी हँस नहीं पाता,

मुहब्बत के सफर में मैं हमेशा ही रहा वेटिंग,
किसी का साथ मिलता तो टिकट कन्फर्म हो जाता,

कि उसके प्यार का लफड़ा वहाँ पकड़ा गया वर्ना,
नहीं तो यार ये क्लिंटन हज़ारों मोनिका लाता....

- Hullad Moradabadi

Sunday 26 April 2009

मुंशी मुनक़्क़ा साहब का अगला कता

आज मुंशी मुनक़्क़ा साहब
पिछली ख़ता को माफ़ फ़रमाते हुए
अगला कता फ़रमाते हैं-
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मैं क्यों बनवाऊँ मोची से
ख़रीदूं क्यों मैं बाटा से
जुमा के दिन तो हर मसजिद में
हर कीमत का मिलता है.

Friday 24 April 2009

सस्ते पे सस्ता

***
हर सस्ते शेर में दारू नहीं होता।
जैसे कि हर बैल मारू नहीं होता।

पेश है मुंशी मुनक़्क़ा साहब का एक कता

एक मजाहिया फिल्म अभिनेता हुए हैं मुंशी मुनक़्क़ा.
मुग़ल-ए-आज़म और पाकीजा जैसी फिल्मों में उन्होंने काम किया था.
मुनक़्क़ा साहब सिर्फ अभिनेता नहीं थे बल्कि मजाहिया शायरी भी किया करते थे.
पेश-ए-खिदमत है उनका कता-

कभी इज्ज़त का मिलता है
कभी ज़िल्लत का मिलता है
मगर मजबूत और बढ़िया
बड़ी बरकत का मिलता है.

Wednesday 22 April 2009

पव्वा संबन्धी शेर


ज़माने से न दब ग़ालिब तू उसके लिए हो जा हऊवा

खीसे को कर ज़रा ढीला, हलक से उतर ले पव्वा !!

Tuesday 14 April 2009

बाइक सम्बन्धी शेर






मुद्द- आ है कमबखत ये अपनी-अपनी लाइकिंग का



बुरा है पै क्या कीजे इस शौक़ ऐ अज़ीम बाइकिंग का

Sunday 12 April 2009

ऐसे वैसे कैसे



कैसे कैसे ऐसे वैसे हो गए
ऐसे वैसे कैसे कैसे हो गए

एक बार फ़िर


मेरे शुरुआती शेर रोमन स्क्रिप्ट में हैं चूंकि तब हिन्दी टाइप के जुगाड़ से खाकसार वाकिफ़ न था (अभी भी 'खाक ' के नीचे नुक्ता कैसे बिठाऊँ ये राज़ है मेरे लिए )। बहरहाल , उन तमाम शेर-चीतों , गीदड़ -बघीरों को देवनागरी में लाना चाहता हूँ ताकि देवता भी इनका मज़ा ले सकें । एक तस्वीर देखें --


याद उन शामों की अब भी बसी है मेरी नसों में


वो ले के पव्वा करना सफर रोडवेज़ की बसों में

Friday 10 April 2009

बुरी संगत का शेर




मली से खट्टा नीम्बू , नीम से करेला कड़वा



और जो न पीवे न पीन दे ऐसा यार भड़वा

'सेविंग द' फिग लीफ़' शायरी






नक़्श हुआ कीजे फरियादी किसी की शोखिए तहरीर का



हर जतन से रखियो सलामत पत्ता मगर अंजीर का





Thursday 9 April 2009

स‌स्ता शेर के लिएइंतखाब के नवाब

देख लीजिये फिर ये जनाब आये हैं
स‌ाथ अपने पांच स‌ाला इंकलाब लाये हैं
रोटी की शिकायत क्या खाक करते हैं
ये तो फिरंगी जूस का स‌ैलाब लाये हैं
आपको फुर्सत नहीं ढाई आखर पढ़ने की
ये आलमी भाईचारे का किताब लाये हैं
जुल्म-सितम की अब कभी बात न होगी
ये अमन-ओ-चैन वाला जुर्राब लाये हैं
किस्मत आप फूटी है, इन्हें क्यों कोसना
ये बूढ़ों को जवान करने का हिस‌ाब लाये हैं
अब कहने की ज़रूरत नहीं कि गरीब हैं
हमस‌ाथ अपने ये दौलत बेहिसाब लाये हैं
चंद दिनों की बात है, फिर आप ही कहेंगे
इंतखाब के जरिये नया नवाब लाये हैं

नदीम अख्तर
द पब्लिक एजेंडा

Wednesday 8 April 2009

आ जाये मुसीबत....

आ जाये मुसीबत तो हटाये नहीं हटती,
उम्र और महँगाई घटाये नहीं घटती,
इश्क़ को बैंक बैलेंस ज़रूरी है दोस्त,
कँगलों से लड़की पटाये नहीं पटती...

ककहरे का कहर







इस दर पे सीखा है ज़ालिम, मैंने बिलोगिंग का ककहरा !

मना लेन दे ऐ खबीस यहीं मुज्को ,दीवाली ईद, दशहरा !!








चित्र : मेमने पर लाड लुटाते मयखान्वी
( सौजन्य :बाबा बोर्ची स्मृति प्रतिष्ठान )

Monday 6 April 2009

साथियो , अबे मेरे कलेजे के टुकडो सुनो.....


दारू छनती बड़ी जगह ,पर नम्बर वन तो सोलन है ,




सस्ता - शेर कोई ब्लॉग नहीं ये तो इक आन्दोलन है !

Friday 27 March 2009

इत्ता गंदा मत सोचा कर...

जनाब फ़रहत शहज़ाद साहब से माफ़ी की गुज़ारिश के साथ-

उल्टा सीधा मत सोचा कर,
पिट जावेगा मत सोचा कर,

'भ' से भूत भी हो सकता है,
इत्ता गंदा मत सोचा कर,

दिन में बीसों बार फ़टी है,
इसका फ़टना मत सोचा कर,

शाम ढले घर भी जाना है,
अद्धा पव्वा मत सोचा कर,

लड़की को तू छेड़ के प्यारे,
चप्पल जूता मत सोचा कर,

शे'र कहा है दाद तो दीजे,
महँगा सस्ता मत सोचा कर..

Tuesday 24 March 2009

बिना ऊंट के रेगिस्तान मुकम्मल नहीं होता

बिना ऊंट के रेगिस्तान मुकम्मल नहीं होता
बिना मुर्दे के कब्रिस्तान मुकम्मल नहीं होता
बिना मुश के पाकिस्तान मुकम्मल नहीं होता
और, तारीख गवाह है, बुत परस्तों के लिए
बिना बुद्ध के बामियान मुकम्मल नहीं होता
हर अच्छाई के बाद बुराई भी जरूरी है, क्योंकि
बिना मुफ्तखोरी के शैतान मुकम्मल नहीं होता
शाया शेर को सराहें न स‌ही, पर यह भी स‌ोचें
बिना दाद के कोई खाकसार मुकम्मल नहीं होता
-Nadeem Akhtar
Public Agenda

Tuesday 10 March 2009

फूल

फूल लेकर फूल आया, फूलकर मैने कहा,
फूल का तुम क्या करोगे , तुम तो खुद ही फूल हो।

Monday 9 March 2009

किसको सींचूँ सोचे पानी?

बच्चों पर आ गई जवानी,
टी.वी. तेरी मेहरबानी,

खर-पतवार उगे गेहूँ में,
किसको सींचूँ सोचे पानी,

वो दिल्ली का हल्वा लाया,
खाने वाली हुई दिवानी,

राम सनेही भूखे बैठे,
रावण-प्रिय खाते गुडधानी,

चूहों ने संगठन कर लिया,
फेल हो गई चूहेदानी,

चूहा बनकर जिये आदमी,
घर में बीवी की कप्तानी,

बदल गये हैं तेवर अब तो,
साथ बीन के भैंस रँभानी...

Friday 13 February 2009

मुझे कोई ऐसा क़माल दे बाबा...

मुझे कोई ऐसा क़माल दे बाबा,
जो हर आफ़त को टाल दे बाबा,

कम आमदनी से घर नहीं चलता,
मेरी भी लाँटरी निकाल दे बाबा,

दिल में कोई हसरत बाकी ना रहे,
मुझको इतना सारा माल दे बाबा,

घरवाली के हाथ न लग जाएँ कहीं,
बाहरवाली के ख़त सँभाल दे बाबा,

जो माँगें तेरे बस की न हों ,
बेहतर है कल पे टाल दे बाबा.....

Wednesday 11 February 2009

नज़्म - 'बक़रा'

क़ाश! मैं भी ऐ बकरे तेरा मालिक होता,
तो बड़े नाज़ से नखरे से बड़ी शान के साथ,
दिखा के सबको मुहल्ले में नहलाता तुझको,
तेरे दो दाँत मैं सब ही को दिखाया करता,
जब कभी सोच में डूबा मैं तुझे घुमाया करता,
तो फिर मूड मे सींगें तू मुझे मारा करता,
मैं तेरे हमलों की शिद्दत से भड़क सा जाता,
जब कभी रात को तू भागने की कोशिश करता,
मैं तेरे कान पकड़ के तुझे लातें धरता,
फिर तेरी दाढी पकड के प्यार से तुझे डाँटा करता,
"अब बता बँधी रस्सी तोड़ के जायेगा क्या?"
मुझे बेताब सा रखता तेरे भागने का नशा,
तू मेरे घर में हमेशा ही गंद मचाता रहता,
तेरी मेंगनी से मेरा घर बस्साता रहता,
कुछ नहीं तो बस तेरा बेनाम सा आशिक़ होता,
क़ाश! मैं भी ऐ बकरे तेरा मालिक होता...

Monday 9 February 2009

तुम्हारा छोकरा तो लोफ़र दिखाई देता है...

जो उनके हाथ में पेपर दिखाई देता है,
वो खाकसार का लेटर दिखाई देता है,

हज़ार बार तुम करो तारीफ़ लेकिन मौलाना,
तुम्हारा छोकरा तो लोफ़र दिखाई देता है,

कहीं ये मेरी वफ़ाओं का सिला तो नहीं है,
जो ओखली में मेरा ही सर दिखाई देता है,

ये कपडे पहनने का ढब तुम्हारा माशाअल्लाह!,
तुम्हारा जिस्म तो क्लीयर दिखाई देता है,

जतन हज़ार किये तब जा के चढीं हाँडियाँ,
भूखे नंगों को तो बस लंगर दिखाई देता है,

मिलेगा 'पद्म-श्री' का अवार्ड 'सस्ते' को,
ये तो 'A' ग्रेड का जोकर दिखाई देता है...

Friday 6 February 2009

ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर...

ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर पैदा न हो,
याद कर पछतायेगा तू मेरे घर पैदा न हो,
तुझको पैदाइश का हक़ तो है मगर पैदा न हो,
ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर पैदा न हो,

हमने ये माना पैदा हो गया, खायेगा क्या,
घर में दाने ही नहीं पायेगा तो भुनवायेगा क्या,
इस निखट्टू बाप से माँगेगा तो पायेगा क्या,
देख कहा मान ले, जाँ-ए-जबर पैदा न हो,
ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर पैदा न हो,

यूँ भी तेरे भाई-बहनों कि है घर में रेल-पेल,
बिलबिलाते फिर रहे हैं हर तरफ़ जो बे-नकेल,
मेरे घर के इन चरागों को मयस्सर कब है तेल,
ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर पैदा न हो,

पालते हैं नाज़ से कुछ लोग कुत्ते बिल्लियाँ,
दूध वो जितना पियें और खायें जितनी रोटियाँ,
ये फ़िरासत* ऐ मेरे बच्चे मुझे हासिल नहीं,
उनके घर पैदा हो और बन के बशर पैदा न हो,
ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर पैदा न हो...

*फ़िरासत= क़ूव्वत,क्षमता,हैसियत

Wednesday 4 February 2009

जो ताकतवर हो...

जो ताकतवर हो उसे महान कहना ही पड़ता है,
कमज़ोर दोस्तों को पहलवान कहना ही पड़ता है,

जो रिश्तेदार अपने घर जाने का नाम ना लें,
मज़बूरी में उन्हें मेहमान कहना ही पड़ता है,

घर वाली को खुश रखने की खातिर अक्सर,
उसे "तू है मेरी जान" कहना ही पड़ता है,

जिसने ज़िंदगी भर हसीनों के सैंडल सहे हों,
ऐसे आशिक़ को पार्टी की शान कहना ही पड़ता है..

Monday 26 January 2009

गणतंत्र दिवस की सभी भारतवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं

झण्डा ऊंचा रहे हमारा।
आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर आईए कसम खा लें कि देश में आतंकवाद को पनपने नहीं देंगे और आतंकी को घुसने नहीं देंगे।


जय हिन्द!

Friday 23 January 2009

...किसका था?

गुलाम अली की गाई एक बड़ी पुरानी ग़ज़ल है. आपने सुनी ही होगी. घबराइए मत, मैं वह आपको सुनवाने नही जा रहा हूँ. मैंने तो बस उसका एक कलजुगी संस्करण तैयार किया है. मैं यहाँ वही ठेल रहा हूँ. अगर आप झेल सकते हैं तो झेलें. आगे तो समझदार हैं ही ख़ुद ही समझजाएँगे की मैं किस ग़ज़ल की बात कर रहा था:

  • तुम्हारे छत में नया ik धडाम किसका था
  • न था अमीन तो आख़िर वो काम किसका था
  • लिखा न बिल में वो खर्च मगर कर्ज रहा
  • मुनीम पूछ रहा है मकान किसका था
  • वफ़ा करेंगे निभाएँगे बात मानेंगे
  • हमें तो याद नहीं ये कलाम किसका था
  • गुजर गया वो जनाना कहूं तो किससे कहूं
  • रयाल दिल से मेरे सुबहो-शाम जिसका था

मत जान बूझ अनजान बनो

मत जान बूझ अनजान बनो

तुम हो मेरी जीवन रेखा
न मरने का सामान बनो
मत जान बूझ अनजान बनो

मैं बनू तुम्हारी केटरीना
और तुम मेरे सलमान बनो
मत जान बूझ अनजान बनों

मैं बन जाऊं पालक-पनीर
तुम पूरी या फ़िर नॉन बनों
मत जान बूझ अनजान बनों

जहाँ मुर्दे भी रोमांस करें
तुम ऐसा कब्रिस्तान बनों
मत जान बूझ अनजान बनों

Sunday 11 January 2009

बकबक

बहुत दिन से सुन रहां हूं सस्ते शेर,
आपकी बकबक, इनकी बकबक ,उनकी बकबक।
बर्दाश्त की हो गई है हद,खामोश हो जा ,या
और बक ,खूब बक , मेरी बला से करेजा बकबक।