Friday 27 March 2009

इत्ता गंदा मत सोचा कर...

जनाब फ़रहत शहज़ाद साहब से माफ़ी की गुज़ारिश के साथ-

उल्टा सीधा मत सोचा कर,
पिट जावेगा मत सोचा कर,

'भ' से भूत भी हो सकता है,
इत्ता गंदा मत सोचा कर,

दिन में बीसों बार फ़टी है,
इसका फ़टना मत सोचा कर,

शाम ढले घर भी जाना है,
अद्धा पव्वा मत सोचा कर,

लड़की को तू छेड़ के प्यारे,
चप्पल जूता मत सोचा कर,

शे'र कहा है दाद तो दीजे,
महँगा सस्ता मत सोचा कर..

5 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

अब चुनाव का दौर है भैये
सब अच्छा-अच्छा मत सोचा कर.

दर्पण साह said...

sab ko apni 'maa' batlakar,
apne baap ka mat socha kar...

अनूप भार्गव said...

कुछ यूँ भी ..

मेरे अब्बा उस की अम्मी
अच्छा है पर मत सोचा कर

दिगम्बर नासवा said...

वाह क्या शेर है....दाद भी अपने अंदाज में क्या बात है .........

कौतुक रमण said...

तू बस लिखता जा प्यारे
दाद लेने की मत सोचा कर