बिना ऊंट के रेगिस्तान मुकम्मल नहीं होता
बिना मुर्दे के कब्रिस्तान मुकम्मल नहीं होता
बिना मुश के पाकिस्तान मुकम्मल नहीं होता
और, तारीख गवाह है, बुत परस्तों के लिए
बिना बुद्ध के बामियान मुकम्मल नहीं होता
हर अच्छाई के बाद बुराई भी जरूरी है, क्योंकि
बिना मुफ्तखोरी के शैतान मुकम्मल नहीं होता
शाया शेर को सराहें न सही, पर यह भी सोचें
बिना दाद के कोई खाकसार मुकम्मल नहीं होता
-Nadeem Akhtar
Public Agenda
Tuesday 24 March 2009
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2 comments:
बिना दाद के कोई खाकसार मुकम्मल नहीं होता...
bahut khoo lagi aapki ye pankti
बिना ऊंट के रेगिस्तान मुकम्मल नहीं होता
jai rajasthan
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