Friday 15 May 2009

बाज़ार मंदा है, पर ज़िंदा है अभी.. पेश हैं ये चार शे'र-

कुछ तमंचे शेष चाकू हो गये,
यार मेरे सब हलाकू हो गये,

ये इलेक्शन में जो हारे हर दफ़ा,
खीझकर चंबल के डाकू हो गये,

नग्न चित्रों का किताबों में था ठौर
दुनिया समझती थी पढाकू हो गये,

देख लो बापू ये बंदर आपके,
आज-कल बेहद लड़ाकू हो गये...

4 comments:

मुनीश ( munish ) said...

maha mast! albela mausam! vaaaaaah! ghazab!

शेफाली पाण्डे said...

wah wah...

RAJ SINH said...

अमा यार आज पहली बार आप्के दर पे आये .सस्ता सुन कर .अब जब कान्गरेस फ़ुल्ल स्पीड पावर मे आ गयी है तो मन्हगायी तो बढेगी ही .उन्का पचासोन साल का रेकर्ड है.तो हम पहले ही सस्ता माल तलशने के चक्कर मे थे .
यहां आके पा रहे हैं कि सिर्फ़ सस्ता ही नहीं.....सस्ता ,उत्तम ,बढियां और टिकाऊ मामला भी है ! ना रोना ना धोना ना इश्क फ़िस्क का चक्कर वक्कर . बस मौज ही मौज है .हन्सो बस हन्सो .चाहे दूसरों पर चाहे ज़माने पर और हिम्मत हो तो खुद पर भी .

तो यार हम फ़टकते ही रहेन्गे. मौका देख भाव ना बढा देना .वरना हम खुदयि अपनी दुकान खोल लेन्गे .

वैसे भयी गद्य मे ऐसा सस्ता माल किसी को चाहिये तो हमारे मेहमान ,सिरीमान छौन्क सिन्ह ’तडका’के "तडका" ब्लोग पर पधार लो .रोटी अपनी ले आयिओ , तडका मार दाल तैय्यार मिलेगी .

(M)Knows said...

Wonderful

Manoj Kumar
PRO/SAIL
Durgapur