Friday 24 July 2009

दिलों से खेलने का हुनर हम नहीं जानते

दिलों से खेलने का हुनर हम नहीं जानते
इसलिये इनकी बाज़ी हम हार गये,
मेरी ज़िन्दगी से शायद उन्हें बहुत प्यार था
इसीलिये मुझे ज़िन्दा ही मार गये,

10 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया !!

ओम आर्य said...

सही है ......खुबसुरत है पंक्तियाँ...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सस्ता कहां..
ये तो बहुत क़ीमती शेर है भई.

RAJNISH PARIHAR said...

सच में आपने तो सच स्वीकार कर लिया पर बहुत से तो अब भी अंडे ही से रहे है यानि लेबल नया माल पुराना..

अमिताभ मीत said...
This comment has been removed by the author.
अमिताभ मीत said...

कुछ उन्हें भी रहा ही होगा हिज्र का एहसास
सो अपने साथ भी दो लम्हे वो गुज़ार गए
और फिर अपनी वुस'अतों का जब ख़याल आया
अपनी हर बात को किस तरह से बिसार गए

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वहीं कुछ ने लिए मेरे कपड़े उतार
बाक़ी कर उधार गए.

प्रीतीश बारहठ said...

खेल समझा न तिरे प्यार को हमने वरना
हम कोई खेल जो खेले हैं तो हारे कम हैं

--------- किसका है याद नहीं.....

kuch to kaho yaar said...

Wah bhai wah. Kadrkarte hain apkezazbaat ki

kuch to kaho yaar said...

Wah bhai wah. Kadrkarte hain apkezazbaat ki