Friday 24 April 2009

सस्ते पे सस्ता

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हर सस्ते शेर में दारू नहीं होता।
जैसे कि हर बैल मारू नहीं होता।

6 comments:

अमिताभ मीत said...

जी !! ये हुआ न सस्ता !!
लाजवाब हूँ ....

मुनीश ( munish ) said...

vaah..vaah..vaah!

मुनीश ( munish ) said...

सिद्धेश्वर जी , मीत जी !
आप दोनों को यहाँ देख कर जी खुश हो गया . देखिये यहाँ आने से कतराना ठीक नहीं माना गया है . यहाँ तो जो जितना गिरा है वो बाकी दुनिया में उतना ही उठा है . ये साहित्यिक अहम् का विसर्जन स्थल है भाई ,आया करो और पूरी तरेह झूम कर गिरे हुए अंदाज़ में .यहाँ कोई मठाधीश नहीं ,कोई फडनवीस नहीं कोई उन्नीस नहीं सब बीस हैं ,छंटे हुए पीस हैं. जय बोर्ची.!

शेफाली पाण्डे said...

main to fan hu is blog kee...

मुनीश ( munish ) said...

shefali ji svaagat hai aapka .

नदीम अख़्तर said...

फाड़ू माल पेला है.... वाह...