सबसे पहले अपनी महफ़ील मे शामिल करने के लिये धन्यवाद ,,
कही पढा हुआ शेर अर्ज किया हैं
अब और क्या गिरायेगा कोइ निगाह से "
इतने हुए जलील कि खुद्दार हो गये""
Saturday, 29 March 2008
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महंगाई के दौर में एक राहत की सांस
5 comments:
Bhai vaah, kyaa baat kahi hai.
वाह साहब. क्या बात है. बहुत बढ़िया .... ख़ुश आमदेद.
दीपक बाबू सुवागत है आपका. बढ़िया ओपनिंग शाट मारा है. यहां सारे के सारे पहले जलील रह चुके हैं. ख़ुद्दारी तो एक लक्ज़री है जो आप जैसे भाई लोग हमें अता फ़रमाएंगे.
वाह भाई वाह , क्या बात है !
kya gajab ki khuddari hai
dil khush ho gaya......
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