Friday 21 March 2008

आज उसकी ही जेब से पौवा निकला

एक शायर हैं. नाम है बिल्लू बादशाह. आज ही उनकी किताब के बारे में मेरे मित्र सुदर्शन ने बताया. बिल्लू बादशाह जी के शेरों का एक नमूना देखिये.....

जिसे समझते थे कोयल वो कौवा निकला
जिसे समझते थे दोस्त, वो हौवा निकला
जो मुझे हरदम रोकता था शराब पीने से
आज उसकी ही जेब से पौवा निकला

4 comments:

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया ऐसे कई सिकंदर गली गली मे दिखाई दे जाते है .जो कहते कुछ है करते कुछ है . होली की हार्दिक शुभकमनाओ के साथ

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

ज्ञान भइया की बात कर रहे हैं क्या?

नीरज गोस्वामी said...

रामा रामा गज़ब हुई गवा रे...पोल हमरा यहाँ खुल गवा रे....
बंधू होली की आड़ में आप जो हमारे बारे में उदगार व्यक्त किए हैं वो अगली होली तक हम याद रखेंगे...एक दिन आप को आप का शेयर नहीं दिया तो इस हद्द तक नीचे उतर गए, कम से कम "आप तो ऐसे ना थे". खुदा गवाह है....हम आप को कब रोके? आप को सिर्फ़ अपने हिस्से की पीने को ही तो कहा था बस....
नीरज

मुनीश ( munish ) said...

आप जैसी हस्तियों का आना मस्तियों को फरोग देता है
वल्लाह................. क्या मज़े ये ब्लोगिंग का रोग देता है !!