Friday, 6 February 2009

ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर...

ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर पैदा न हो,
याद कर पछतायेगा तू मेरे घर पैदा न हो,
तुझको पैदाइश का हक़ तो है मगर पैदा न हो,
ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर पैदा न हो,

हमने ये माना पैदा हो गया, खायेगा क्या,
घर में दाने ही नहीं पायेगा तो भुनवायेगा क्या,
इस निखट्टू बाप से माँगेगा तो पायेगा क्या,
देख कहा मान ले, जाँ-ए-जबर पैदा न हो,
ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर पैदा न हो,

यूँ भी तेरे भाई-बहनों कि है घर में रेल-पेल,
बिलबिलाते फिर रहे हैं हर तरफ़ जो बे-नकेल,
मेरे घर के इन चरागों को मयस्सर कब है तेल,
ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर पैदा न हो,

पालते हैं नाज़ से कुछ लोग कुत्ते बिल्लियाँ,
दूध वो जितना पियें और खायें जितनी रोटियाँ,
ये फ़िरासत* ऐ मेरे बच्चे मुझे हासिल नहीं,
उनके घर पैदा हो और बन के बशर पैदा न हो,
ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर पैदा न हो...

*फ़िरासत= क़ूव्वत,क्षमता,हैसियत

6 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत जबर्दस्त रचना है। बधाईयां।

निर्मला कपिला said...

bahut bdiya likha hai badhaai

Unknown said...

ye rachna kafi shandaar hai

dhanyawad

nidhi said...

sb kuch itna mhnga hai to jindgi sastey shero se kt jayegi...
sach sach hi rhta hai hanste hue kahe ya subakte hue ..vhi hansi inme hai

Anonymous said...

good one. keep writing ....

by the way.. when i was searching for the user friendly Indian Language typing tool..esply Hindi...found 'quillpad'...do u use the same...?

Anil Kumar said...

गरीब के बच्चे पैदा होने से पहले ही क्या-क्या सोचने पर मजबूर किये जाते हैं!