Saturday 1 November 2008

रात भर दबा के पी, खुल्लम खुल्ला बार में...

यह रचना मित्र लेलेराम ने ई-मेल की थी.बाद में पता चला कि असल में ये अपने "उड़नतश्तरी" साहब कि गज़ल है, और लेले भाई ने उनका नाम उड़ा के अपना नाम चढा दिया था. बहरहाल, गज़ल का क्रेडिट "उड़नतश्तरी" साहब के नाम है...और उनसे इज़ाज़त की गुज़ारिश के साथ आपकी खिदमत में पेश है...

रात भर दबा के पी, खुल्लम खुल्ला बार में,
सारा दिन गुजार दिया बस उसी खुमार में,  

गम गलत हुआ जरा तो इश्क जागने लगा,
रोज धोखे खा रहे हैं जबकि हम तो प्यार में, 

कैश जितना जेब में था, वो तो देकर आ गये,
बाकी जितनी पी गये, वो लिख गई उधार में,

यों चढ़ा नशा कि होश, होश को गंवा गया,
और नींद पी गई उसे बची जो जार में,

वो दिखे तो साथ में लिये थे अपने भाई को,  
गुठलियाँ भी साथ आईं, आम के अचार में,

याद की गली से दूर, नींद आये रात भर, 
सो गया मैं चैन से चादर बिछा मजार में,

हुआ ज़फ़र के चार दिन की उम्र का हिसाब यूँ,
कटा है एक इश्क में, कटेंगे तीन बार में,

होश की दवाओं में, बहक गये "लेले" भी,
फूल की तलाश थी, अटक गये हैं खार में....

7 comments:

समयचक्र said...

याद की गली से दूर, नींद आये रात भर,
सो गया मैं चैन से चादर बिछा मजार में,
bahut hi umda rachana .

Udan Tashtari said...

ऋतेश भाई

यह रचना तो हमारी लिखी हुई है और लेले साहब नें अपना नाम भी लिख लिया समीर अलग करके.
अजब बात है. मगर निश्चित ही रचना की लोकप्रियता तो सिद्ध कर ही रही है. :)

यह मैने इस साल मई में लिखी थी और वाशिंग्टन में मंच से पढ़ी भी:
यहाँ देखें

http://udantashtari.blogspot.com/2008/05/blog-post_20.html

अमिताभ मीत said...

इश्क में उसके पड़ा क्यों डॉक्टर की राय थी ?
जिसकी नज़रों में थे तुम ना एक में न हज़ार में !!

Udan Tashtari said...

ऋतेश भाई

अरे आप क्यूँ माफी मांग रहे हैं? आपको क्या पता था..जाने दिजिए...आप अपने हैं, तो इत्तला करना फर्ज था. यूँ ही कितने लोग मौलिक रचनाऐं ले उड़ते हैं कि पता तक नहीं चल पाता. मगर यह सब तो चलता रहता है.

तारीफ के लिए आपका आभार.

सादर

समीर लाल

ऋतेश त्रिपाठी said...

माफ़ी चाहूँगा कि लेलेराम जी ने आपकी गज़ल अपने नाम से चेप दी..मैनें खूब हड़काया...पर उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि असल में नाम में हेर-फेर उन्होंने नहीं किया, बल्कि उनके एक मित्र "डेंगू" जी ने किया....आप भी देख सकते हैं- http://www.fundoozone.com/forums/showthread.php?t=20555

कुछ भी हो...लिखा ज़बर्दस्त है

अनुपम अग्रवाल said...

क्लेम अपना कर दिया आपने तो प्यार में
जितनी मेहनत उसने की वो गयी उधार में

Udan Tashtari said...

इजाजत की गुजारिश कैसी, शर्मिंदा कर रहे हैं आप तो-बस, क्रेडिट लगा दिया, काफी है. बहुत आभार.