(1)
सोई है तक़दीर ही जब पीकर के भाँग,
महँगाई की मार से टूटी हुई है टाँग,
तुझे फ़ोन अब न करूँगा P.C.O. से हाँगकाँग,
मुझसे पहले सी मुहब्बत मेरे महबूब न माँग...
(2)
दिल को आदत सी हो गई है चोट खाने की,
गम छुपाने की,भीगी पलकों से मुस्कराने की,
होता जो गुमाँ हमें इस खेल-ए-सेन्सेक्स का,
तो गलती न करते पैसे "निफ़्टी" में लगाने की...
2 comments:
sahi kah rahe hain hamare bhi 4, 1 me badal gaye hain
sahi kah rahe hain hamare bhi 4, 1 me badal gaye hain
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