Monday, 14 January 2008

एक दोहा !!


सकल पदारथ है जग माहीं!

लऊके कुछ नहिं,चश्में चाहीं !!

3 comments:

इरफ़ान said...

भई वाह! आप शायद सकल पदारथ "हैं" ही कहना चाह रहे हैं, कीबोर्ड से उँगलियाँ फिसल गयीं.
मज़ा आ गया.

VIMAL VERMA said...

अब ठीक कर दिया है,गलती बताने के लिये शुक्रिया नया माल कुछ दिनो मे आयेगा,तब तक के लिये......

मुनीश ( munish ) said...

is fisla fisli ka hi naam jindgi bataven hain ji? ap aye saath me maje ko to ana i tha.