Monday, 10 November 2008

सिगरेटिया गज़ल !














जल रही है जहाँ-जहाँ सिगरेट,
कर रही है धुआँ-धुआँ सिगरेट,

हिज्र की शब में रोशनी कब है,
है फ़क़त ये अयाँ-अयाँ सिगरेट,

रात जागने की कहीं जो बात आई,
हो गई रोशन वहाँ-वहाँ सिगरेट,

इसकी आदत है जल कर के गिरना,
पाओगे अब कहाँ-कहाँ सिगरेट,

हो ना मय की तलब,न साकी की,
कर दे ऐसा समाँ-समाँ सिगरेट,

कैसे छोड़ोगे अब इसे "सस्ते",
है रगों में रवाँ-रवाँ सिगरेट...

5 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सिगरेट प्रेमी आपकी इस रचना से बहुत अप्रसन्न होंगे. हालांकि मुझे बहुत अच्छी लगी.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सिगरेट प्रेमी आपकी इस रचना से बहुत अप्रसन्न होंगे. हालांकि मुझे बहुत अच्छी लगी.

तसलीम अहमद said...

jab se teen rupee ki hui gold flack
apun ne to chhod di cigaret.
achhe-achhon ko dekha budget ke baad
beedi se dil lagaya chhod ke cigrate
aap kisi had tak theek kahte ho
jiya ke sath jeb ko dhuan-dhuan kar rahi cigaret.

Ek ziddi dhun said...

सिगरेट पुराण बढ़िया है

महेन्द्र मिश्र said...

कैसे छोड़ोगे अब इसे "सस्ते",
है रगों में रवाँ-रवाँ सिगरेट...
Bahut badhiya rachana. badhai.