हमारे एक मित्र को डाक्टर के पास ले जाना पड़ा दरअसल में उनको मानसिक कब्ज़ हो गया था । शारीरिक कब्ज़ तो आप जानते ही हैं । मानिसक कब्ज़ में दिमाग में विचार फंस जाते हैं और भड़ास की तरह बाहर नहीं निकलते । डाक्टर ने उनको जो पर्चा दिया वो प्रस्तुत है ।
ब्लागिंग ब्लागिंग खेलिये सुबह दोपहर शाम
और नहीं गर आपको दूजा कोई काम
दूजा कोई काम, धरम पत्नी ना पूछे
चले आओ कम्प्यूटर पर तुम आंखें मींचे
कह 'धौंधू कवि' जहां न कोई लेता रेगिंग
ऐसा इक कालेज हमारा है ये ब्लागिंग
8 comments:
बहुत प्यारा छंद है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ब्लागिंग करना इक नशा नहीं सहज यह काम।
खेल नहीं फिर भी करें सुबह, दोपहर, शाम।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
dhanya dhanya ye blog pradesh / yahan ek barabar singh aur mesh !
सस्ता शेर हमेशा से ही कुछ महंगा शेर होता है .........दम है आपके बातो मे ....
prabhu aap yahaan bhi hai..... jindaa baad.... sadar pranaam..
arsh
:)
तो इसी बात पर क्यूँ न हो जाए एक सस्ता शेर हमारी तरफ से भी........
ब्लोगिंग का तो देखिये, अजब-ग़ज़ब है खेल;
नए विचारों और लोगों से, नित्य कराये मेल.
बहुत बढ़िया......
साभार
हमसफ़र यादों का.......
बहुत बढ़िया......
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