Saturday 28 June 2008

मुनीश जी कहा है

साहिबान, कदरदान, मेहरबान पिछले कुछ दिनो से सस्ते शेर का जंगल "सतपुडा के उंघते अनमने जंगल" हो गया है .आप सबो की नजरे इनायत लाजिम है । मै एक शेर पढता हु माहौल बनाने के लिये फ़िर उसमे असली रंग तो अनुप जी ही भरेंगे हमेशा की तरह ॥तो मै शेर पढता हु ,हँसना है या रोना है ये साहिबान तय करे साथ ही ये आशा भी करता हु कि आप जरुर आयेंगे और अगर नही आयेंगे तो ये बताने आयेंगे कि आप नही आयेंगे ॥




मेरे दील के अरमा आँसुओ मे बह गये ॥
हम गली मे थे गली मे रह गये
कमबख्त ला‍इट चली गयी वक्त पे
जो बात उनसे कहनी थी उनकी मम्मी से कह गये॥

3 comments:

अनूप भार्गव said...

दीपक:
तुम्हारे इस हादसे के कुछ साल बाद क्या हुआ , ये जानने के लिये ऊपर वाला शेर पढो ।

Anonymous said...

vha vha. sahi hai.jari rhe.

राज भाटिय़ा said...

बहुत खुब यह गलती सच मे हर कई साल पहले कर चुके हे, फ़िर क्या हुया मत पुछना...