Monday 6 October 2008

मुफ़त की रोटियाँ तोड़ो ससुर जी माल वाले हैं...

करीबन दो-ढाई महीनों से लगातार पोस्टीयाने की वजह से स्टाक की रौनक खतम होने लगी है.सो सस्ता लिखने का फ़ैसला करना पड़ा, नहीं तो अपनी दुकान बंद करने के अलावा कोई चारा नहीं बचता. उम्मीद है ये कोशिश आपको अच्छी लगेगी-

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जहाँ की फ़िक्र को छोड़ो ससुर जी माल वाले हैं,
मुफ़त की रोटियाँ तोड़ो ससुर जी माल वाले हैं,

कि लो गाड़ी नई माडल,बिताओ फ़्रांस में छुट्टी,
कोई मौका नहीं छोड़ो ससुर जी माल वाले हैं,

ये मेरा सूट "अरमानी" ये मेरे शूज हैं "गुच्ची",
घड़ी "रोलेक्स"औ"राडो" ससुर जी माल वाले हैं,

सालियों औ सलहजों से निस्बतें भी ठीक हैं लेकिन,
निगाहें सास पर मोड़ो ससुर जी माल वाले हैं,

सहो बीवी के नखरे तुम दनादन जूतियाँ खाओ,
न उसका हाथ तुम पकड़ो ससुर जी माल वाले हैं,

सभी दामादों में तुमही तो इक चंगेज़ हो लेकिन,
मियाँ यूँ भी नहीं अकड़ो ससुर जी माल वाले हैं,

ये बातें भूल जाओ तुम कभी तुममें भी थी गैरत,
घर के सब आईने तोड़ो ससुर जी माल वाले हैं...

( दूसरा और तीसरा शे'र मित्र  रोहित जैन  के सौजन्य से)

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