Wednesday, 15 October 2008

हाथों में अब के साल भी पर्चियाँ हज़ारों हैं...

मेरी शादी के लिये दोस्तों लड़कियां हज़ारों हैं,
हर खिड़की में लड़की,और खिड़कियाँ हज़ारों हैं,

एक तुम ही नहीं अकेली मेरे जाल में फँसी,
इस जाल में तुम जैसी मछलियाँ हज़ारों हैं,

लिखा जो तुमने लव-लेटर तो क्या हुआ हुज़ूर,
हमारी दराज़ में इस जैसी चिट्ठियां हज़ारों हैं,

हम वो परवाने नहीं जो शमा पे जल मरें,
हमारे घर में पहले ही बत्तियाँ हज़ारों हैं, 

दिये थे पहले भी इश्क़ के इम्तहान बहुत,
हाथों में अब के साल भी पर्चियाँ हज़ारों हैं,

एक और गई हाथ से तो मलाल क्यूँ करें,
देखिये तो बाग में तितलियाँ हज़ारों हैं,

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