Saturday, 7 June 2008
'सस्ता शेर' की पिछली त्रिवेणी पढ़कर यह शेर-
इस प्रकार के शेरों का रचयिता शायद कोई व्यक्ति नहीं बल्कि समाज होता है और इससे उस समाज का इथोस झलकता है. मूल दोहा है- माटी कहे कुम्हार से... आप सब जानते ही हैं. अब इसे पढ़िये....-----------------------------
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कच्छा बोला धोबी से, तू क्यों पीटे मोहि
अगर कहीं मैं फट गया, पिटवाऊंगा तोहि.
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1 comment:
सत्य वजन है सनके दिक मुनी का आपकी कविता सिन्धु मे गोता लगाने के बाद संसार कि सारी पिडाये शांत हो गयी !!
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