Monday, 9 June 2008

अर्ज़ किया है......

वो मेहरबान भी हुए हमपे तो इस तरह.....

वो मेहरबान भी हुए हमपे तो इस तरह.....

मरहम लगाया ज़ख्म पर खंजर के नोक से

6 comments:

अमिताभ मीत said...

बहुत बढ़िया हुज़ूर. लेकिन ये सस्ता कहाँ हुआ ?
"दारु मिला करे है फ़क़त इतने से मतलब
आंखों से हो कि जाम से या फिर हो ओक से"

Alpana Verma said...

मरहम लगाया ज़ख्म पर खंजर के नोक से --ye to gahari si baat hui---ye sher sasta nahin hai..

VIMAL VERMA said...

बाप रे बहुत गहरा और घातक शेर छोड़ा है है आपने....गज़ब है भाई

Anonymous said...

wah bahut khub,mohobbat ka dard bhi hona jaruri hai mithas ke saath:)sundar sher

Ashok Pande said...

खतरनाक, सस्ता शेर. झुरझुरी सी हो आई बाऊ जी.

Anonymous said...

ye sasta nahi khatarnaak sher hai,
galti se lagta hai is basti me aa gaya

lekin janab kya baat kahi hai,