Saturday, 7 June 2008

जुते खो गये

उन्होने फ़रमाया कि महफ़ील मे जुते खो गये अब घर कैसे जायेंगे ॥
हमने कहा आप शेर शुरु तो किजिये इतने बरसेंगे आप गिन नही पायेंगे ॥

8 comments:

तरूश्री शर्मा said...

कौन कहता है,आसमां में सुराख नहीं होता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों...
और फिर वहां से हट जाओ,
क्योंकि पत्थर वापस नीचे भी आता है।

Unknown said...

भई वाह, क्या बात कही है.

विजय गौड़ said...

वा वाह वा वाह.

अनूप भार्गव said...

दीपक:

सागर खैयामी साहब का कता कुछ इस तरह से है :

इक शाम किसी बज़्म में जूते जो खो गये
हमने कहा बताइये घर कैसे जायेंगे
कहने लगे शेर सुनाते रहो यूँ ही
गिनते नहीं बनेंगे अभी इतने आयेंगे ।

स्नेह
अनूप

दीपक said...

धन्यवाद अनुप जी

दीपक said...

tanushree jee

आपका शेर हमारे शेर से भारी है इर्शाद

Anonymous said...

मगर जूते दीपक भाई ज्यादा इकट्ठे कर पायेंगे

Anonymous said...

Achha agar itne jute aayenge to Deepak bhai sasta sher chor saste jute bechte najar aayenge....:D