Saturday, 7 June 2008

जिन आंखों पर हैं आशिक

आंखें क्या-क्या न देखें और क्या-क्या न दिखायें
यहां तो बस पार उतरें वही जो इनमें डूब-डूब जायें

और इसके लिये डरना मना है
क्योंकि
इस बाबत एक नेक सलाह
अपने प्यारे बाबा मीर तकी़ 'मीर' दे गए हैं
आइए देखें-

क्या घूरते हो हरदम डरते नहीं हैं कुछ हम
जिन आंखों पर हैं आशिक उन आंखों के दिखाये!

3 comments:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

सस्ते शेर का क्राईटीरिया भंग मत करो भाए३. ह्हाह्हाहागुर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र!

दीपक said...

अब आप ही बताये हम रोये या हँसे हा हा हा
just joking don"t mind
वैसे ये शेर सस्ता भले ना हो पर काम का है ॥।

tarun mishra said...

नियाजे -इश्क की ऐसी भी एक मंजिल है ।
जहाँ है शुक्र शिकायत किसी को क्या मालूम । ।