शौहर से इंतहाई मुहब्बत की ये मिसाल देखें-
अध पकी खिचड़ी रखी है शौक़ फ़रमाऐंगे क्या?
तौबा खाली पेट ही दफ़्तर चले जाऐंगे क्या?
चाय में लहसन की बदबू आ गई तो क्या हुआ?
अल्लाह! माँ-बहन पर आप उतर आऐंगे क्या?
दूध में मक्खी ही थी चूहा तो न था ऐ हूज़ूर,
हाथ धो कर आप अब पीछे ही पड़ जाऐंगे क्या?
प्याज का हलवा बना दूँ ऐ ज़रा रुक जाइये,
भूखे रह कर आप मेरी नाक कटवाऐंगे क्या?
Thursday, 7 August 2008
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7 comments:
vaah bhai vaah mazaa aa gya.
Laiye bhooke rahne se to theek hai Pyaz ka halva.
बहुत बढिया लिखा है ।
ओमलेट की कोशिश थी , बन गई है भुर्जी ,
अब इसे ओमलेट समझ कर ही खायेंगे क्या ?
15 ko chutti hai, ghar aaiye, pyaaj ka halwa aur lahsan ki kheer, dono milenge :-)
"कपड़े तो देखिये, सब इस्त्री से जल गए|
ये तौलिया लपेट लीजे, दफ्तर चड्डी में जायेंगे क्या|"
सुना है कुछ लोग चड्डी पर भी इस्त्री कराते हैं| नाडे वाले कच्छे की इस्त्री तो समझ भी आती थी| पहली बार ऊँगली करने के साथ ही गुरु लोगों की महफिल में मेरा सलाम|
क्या बात कही है - दिल के सारे ज़ख्म हरे हो गए! ;-)
khoob -bahut khoob.
Badhiya jaa rahe hain....
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