Tuesday 12 August 2008

आँखें...


अहद का इक ज़वाल हैं आँखें,
कितनी केहतोर-रिजाल हैं आँखें,
एक से दूसरी नहीं मिलती,
भैंगेपन का कमाल हैं आँखें,
देखते ही रगड़ दिया दिल को,
आप की रेग-माल हैं आँखें,
दुश्मनों को निहाल करती हैं,
मेरे हक़ में वबाल हैं आँखें,
302 भी इन पे लगता है,
कितनी ज़ालिम निढाल हैं आँखें,
डालर-ओ-पाउन्ड इन को भाते हैं,
शैख जी का रियाल हैं आँखें,
तुम कभी इनमें झाँक के देखो,
इक गहरी सी चाल हैं आँखें...

2 comments:

Smart Indian said...

दीवाली का दिया, होली का गुलाल हैं आँखे
ज्यादा क्या कहूं बस कमाल हैं आँखें!

विनय (Viney) said...

क्या कहूं! मैं तो फँस गया इनमे
जमाल ऐसा हैं! बेमिसाल आँखे