अहद का इक ज़वाल हैं आँखें,
कितनी केहतोर-रिजाल हैं आँखें,
एक से दूसरी नहीं मिलती,
भैंगेपन का कमाल हैं आँखें,
देखते ही रगड़ दिया दिल को,
आप की रेग-माल हैं आँखें,
दुश्मनों को निहाल करती हैं,
मेरे हक़ में वबाल हैं आँखें,
302 भी इन पे लगता है,
कितनी ज़ालिम निढाल हैं आँखें,
डालर-ओ-पाउन्ड इन को भाते हैं,
शैख जी का रियाल हैं आँखें,
तुम कभी इनमें झाँक के देखो,
इक गहरी सी चाल हैं आँखें...
2 comments:
दीवाली का दिया, होली का गुलाल हैं आँखे
ज्यादा क्या कहूं बस कमाल हैं आँखें!
क्या कहूं! मैं तो फँस गया इनमे
जमाल ऐसा हैं! बेमिसाल आँखे
Post a Comment