Saturday 23 August 2008

इश्क़ की मार....



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इश्क़ की मार क्या करें साहिब,
दिल है बीमार क्या करें साहिब,

एक लैला थी एक मजनू था,
अब है भरमार क्या करें साहिब,

जिस ने चाहा उसी ने लूट लिया,
हम थे हक़दार क्या करें साहिब,

उनको मेक-अप ने डुप्लीकेट किया,
ऐसा सिंगार क्या करें साहिब,

पेट तो भूख से परेशान है,
रंग-ओ-गुल्नार क्या करें साहिब,

जिनसे है प्यार की उम्मीद हमें,
वो हैं खूंखार क्या करें साहिब...

6 comments:

Rakesh Kaushik said...

bahut kam shabdo me bahut kuch keh diya

it's really funny

rakesh kaushik

Anonymous said...

जिस ने चाहा उसी ने लूट लिया,
हम थे हक़दार क्या करें साहिब,

hakdar they lootne ke aur loot liya to bura kya kiya

bahut badhiya

इरफ़ान said...

भई वाह कमाल है.

nadeem said...

एक लैला थी एक मजनू था,
अब है भरमार क्या करें साहिब,
पेट तो भूख से परेशान है,
रंग-ओ-गुल्नार क्या करें साहिब,

जिनसे है प्यार की उम्मीद हमें,
वो हैं खूंखार क्या करें साहिब.
waah!!!

Smart Indian said...

वो हैं खूंखार क्या करें साहिब...
बहुत खूब!
बहुत ही जालिम ग़ज़ल है! इस पर तो गोलियाँ चल जायेंगी. जमे रहो भाई!

अमिय प्रसून मल्लिक said...

kuchh issi tarah ki baatein hain ki...

"bhara ho pet to sansaar jagmagaata hai,
lagi ho bhookh to imaan dagmagata hai."