Saturday 20 September 2008

सस्ता-शे'र के शायरों के लिये खास पेशकश-

(1)

बढ रहा है क़ौम के बच्चों में ज़ौक-ए-शायरी,

गोया शायरी हर फ़र्द पर एक फ़र्ज़ है,

रहा यही आलम तो हर बच्चा पैदाइश के बाद,

साँस लेते ही पुकारेगा- "मत्ला अर्ज़ है" ! 


(2)
ये मुझको खबर है कि नहीं मुझमें कोई गुन,

लेकर के यहाँ आया हूँ मैं आज नई धुन,

तू अपनी गज़ल पढ के खिसकता है किधर को,

मैंने तो तुझे सुन लिया अब तू भी मुझे सुन...


(3)
शे'र अच्छा है,फ़न अच्छा है,क़माल अच्छा है,

देखना सब ये कहेंगे के खयाल अच्छा है,

दोस्तों आप को सुनाऊँगा नये शे'र अभी,

वो अलग बाँध के रक्खा है जो माल अच्छा है...

4 comments:

ALOK PURANIK said...

भई क्या केने

अनूप भार्गव said...

वो जो अलग बाँध के रखा है , वो भी दिखाओ ना ?

विनय (Viney) said...

छा गये गुरु!

vineeta said...

तू अपनी गज़ल पढ के खिसकता है किधर को,

मैंने तो तुझे सुन लिया अब तू भी मुझे सुन...

bahut badhiyaaa.....dil khush ho gya.