Monday, 29 September 2008

घर पे आये वो बाँधने राखी...

अब वो पहले से उनके गाल नहीं,
फिर भी उनकी कोई मिसाल नहीं,

अब तो है सर पे तोहमतों का बोझ, 
एक मुद्दत से सर पे बाल नहीं,

गर हवा में भी उड़ के दिखलाऊँ,
चश्म-ए-बीवी में कुछ कमाल नहीं,

लज़्ज़त-ए-हिज्र है बुढापे में,
लज़्ज़त-ए-कुर्ब का सवाल नहीं,

घर पे आये वो बाँधने राखी,
गर्मी-ए-शौक़ का कमाल नहीं,

अब भी मिलते हैं लोग मुझ जैसे,
हाँ,शरीफ़ों का अब भी अकाल नहीं..

5 comments:

Anonymous said...

घर पे आये वो बाँधने राखी,
गर्मी-ए-शौक़ का कमाल नहीं,


अब भी मिलते हैं लोग मुझ जैसे,
हाँ,शरीफ़ों का अब भी अकाल नहीं..
wah wah bahut hi kamal ke sher:):)

PREETI BARTHWAL said...

वाह वाह वाह ............

वर्षा said...

फिर आपका भी तो है कमाल
सस्ते शरों से मचाई है धमाल

Smart Indian said...

लाजवाब!

हिन्दुस्तानी एकेडेमी said...

आप हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, इसके लिए साधुवाद। हिन्दुस्तानी एकेडेमी से जुड़कर हिन्दी के उन्नयन में अपना सक्रिय सहयोग करें।

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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥


शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। हार्दिक शुभकामना!
(हिन्दुस्तानी एकेडेमी)
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