पेशे-ख़िदमत है हिन्दुस्तानी खवातीन का हाले-दिल बयान करती एक सस्ती गज़ल. अनुरोध है कि पढते समय दिल में महँगी भावनाएँ न लाएँ-
------------------------------
नई साड़ी लाने को जी चाहता है,
पुरानी जलाने को जी चाहता है,
पुरानी जलाने को जी चाहता है,
पहनकर मोहल्ले कि सब औरतों को,
इकट्ठा दिखाने को जी चाहता है ,
मियाँजी क भारी हुआ है प्रमोशन,
सो पैसे उड़ाने को जी चाहता है,
जो बातें सुनी थीं पड़ोसन के घर में,
वो बातें बताने को जी चाहता है ,
सुना है बड़ा खूबरू है पड़ोसी,
क़सम से पटाने को जी चाहता है,
ये हलवा जो मैने पकाया है मुझको,
उसे भी खिलाने को जी चाहता है,
बनी जब से सौतन, सहेली हमारी,
कहीं भाग जाने को जी चाहता है ,
बड़े मूड में आज आया है ज़ालिम!
उसे तड़पाने को जी चाहता है,
सुना कर उसे अपनी गज़लें धड़ाधड़,
मुसल्सल पकाने को जी चाहता है,
मुझे जितना उसने सताया है उतना,
उसे भी सताने को जी चाहता है ...
4 comments:
hansaya bahut hai aapne mohtaram
daad with bagh-dad dene ko ji chahta hai
कॉमन मैन की बात दोहराने को जी चाहता है।
HAMNE KAHA KHAMOSH
इस नयी शादी उसे पहनाने को दिल करता हे, पुरानी उतारने कॊ दिल करता हे......
Post a Comment