Thursday, 4 September 2008

गर्दिश-ए-अय्याम....

ये शे'र विजयशंकर चतुर्वेदी जी के एक पोस्ट से प्रेरित हैं, पर उनके स्कूल आँफ़ थाट्स से सरोकार रखने वाले लोग इसके रिक्त स्थानों की पूर्ति ना करें :) । बाकी सब लोग कोशिश कर सकते हैं-

हर सुबह, हर शाम की माँ ____ के रख दी,
तुमने तो गर्दिश-ए-अय्याम की माँ ____के रख दी,
ठर्रा भी पिलाया मुझे व्हिस्की भी पिलाई,
साकी ने तो मेरे जाम की माँ ____ के रख दी...

2 comments:

बरेली से said...

pooj

राज भाटिय़ा said...

ऎसी की तेसी कर

हर सुबह, हर शाम की माँ _ऎसी की तेसी कर___ के रख दी,